चुटकी-बीछिया कहने को तो एक गह्ना है मगर सुहागन की पहचान से कम नहीं. यह माथे के सिन्दुर और मंगलसुत्र की तरह ही ज़रूरी है. इसी से महिलाओ के शादिशुदा होने के बारे में पता चलता है. कुछ समुदाय में नाक की नथनी ज़रूरी होती है. इस तरह ये जेवर जन्जीरे बन कर औरत को बंधनो में जकड़ देते है. मगर क्या कभी किसी ने सोचा है इसके कारण एक औरत के मन पर क्या गुजरती होगी. क्या वह औरत यह नहीं सोचती होगी कि पति के अस्तित्व होने पर ही वह इन गहनो का इस्तेमाल कर सकती है. तो क्या किसी पुरुष के कारण ही उसे इन गहनो के इस्तेमाल की इजाजत मिलेगी. इस तरह तो उसके अस्तित्व को नकारा जा रहा है. कहना सिर्फ इतना है कोई लड़की कुवारी हो या शादिशुदा, विधवा हो या तलाकशुदा, उसे इतनी तो आजादी मिले की गहनो का चुनाव वह खुद कर सके. किसी को टिका पहनने का शोक होता है, किसी को चूड़ियों का. वह अपनी मर्जी से गहनो का चुनाव कर सके. विचारणीय यह भी है कि क्यो किसी महिला को अपने शादिशुदा होने की पहचान समाज में करवाने की ज़रूरत है. कोई पुरुष तो ऐसा करता नहीं, तो फिर महिला ही क्यो. और यदि महिला के लिये ये ज़रूरी है तो फिर पुरुष के लिए भी कोई शादिशुदा, विधुर होने की पहचान के लिए कोई गहना ज़रूरी करना चाहिए. ये भी पढ़े आध्यात्म का कोर्स भी शुरू कर सकता है इग्नू इन तीन लोगो से सम्पर्क में बनाइये दूरी - आचार्य चाणक्य अजान है आगाज नमाज की ओर, कामयाबी की ओर