कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही क्यों मनाते हैं देव दीपावली? जानिए राक्षस से जुड़ी पौराणिक कथा

कार्तिक पूर्णिमा, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में मनाते हैं। जी दरअसल कार्तिक का यह महीना पूर्ण रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है और कार्तिक के महीने की पूर्णिमा को वर्ष में सबसे पवित्र पूर्णिमाओं में से एक माना जाता है। इसी के साथ कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरा पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पूर्णिमा को त्रिपुरा पूर्णिमा इसलिए कहते हैं क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। आपको बता दें कि इस बार कार्तिक पूर्णिमा 8 नवंबर 2022 मनाई जाएगी। जी हाँ और मान्यता के अनुसार, इस दिन विष्णु भगवान के मत्सयावतार का भी जन्म हुआ था।

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कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त- कार्तिक पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 07 नवंबर की शाम 04 बजकर 15 मिनट से हो रही है। इसका समापन 08 नवंबर की शाम 04 बजकर 31 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा इस बार 08 नवंबर को ही मनाई जाएगी।

कार्तिक पूर्णिमा कथा- एक समय त्रिपुरा राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। उसकी तपस्या के प्रभाव से समस्त जड़-चेतन, जीव और देवता भयभीत हो गये। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। त्रिपुरा राक्षस के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। त्रिपुरा ने वरदान मांगा कि, 'मैं न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्यों के हाथों से'। इस वरदान के बल पर त्रिपुरा निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं उसने कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई कर दी। इसके बाद भगवान शंकर और त्रिपुरा के बीच युद्ध हुआ। अंत में शिव जी ने ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु की मदद से त्रिपुरा का संहार किया।

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