देहरादून: उत्तराखंड इस समय गहन शोक में डूबा हुआ है। आप सभी को बता दें कि इस समय शोक में पूरा देश ही डूबा हुआ है क्योंकि यह दुःख का समय है। देश ने अपनी तीनों सेनाओं का पहला सर्वोच्च अफसर खोया है। लेकिन इस बीच उत्तराखंड की विडंबना यह है कि सैन्य क्षेत्र में सर्वोच्चता के शिखर पर पहुंचा कोई भी अधिकारी अलग-अलग कारणों से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। जी हाँ, इस लिस्ट में जहाँ जनरल बिपिन रावत और जनरल बिपिन चंद्र जोशी का कार्यकाल उनके असमय निधन के कारण पूरा नहीं हो पाया। वहीं, उत्तराखंड से नौसेना के शीर्ष पर पहुंचे अल्मोड़ा निवासी एकमात्र एडमिरल डीके जोशी ने साल-2014 में सिंधुरत्न हादसे के बाद बीच कार्यकाल में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उत्तराखंड एक ऐसी जगह है जहाँ हर दूसरे-तीसरे घर से सैनिक निकलता है। हालाँकि, पहले पहल सेना के शीर्ष पर पहुंचने का मौका उत्तराखंड को 1993 में मिला। यह उस समय की बात है जब पिथौरागढ़ के जनरल बिपिन चंद्र जोशी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (थल सेनाध्यक्ष) बने। हालाँकि जनरल जोशी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। केवल सालभर में 18 नवम्बर 1994 को उनका असामयिक निधन हो गया। वह 17वें आर्मी चीफ थे। वहीं जनरल जोशी के 22 साल बाद देश को 27वें आर्मी चीफ मिले उत्तराखंड से। वह रहे जनरल बिपिन रावत। जनरल रावत थल सेना प्रमुख के बाद देश की तीनों सेनाओं के प्रमुख यानी 'चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ' बनाए गए। हालाँकि सीडीएस के तौर पर उनका कार्यकाल बाकी था, जो वे पूरा नहीं कर पाए। अब इसे हादसा कहे या फिर इत्तेफाक कुछ कहा नहीं जा सकता। दोनों को ही उत्तराखंड और यहां के पहाड़ के प्रति गहरा लगाव था। देहरादून से भी दोनों का शैक्षणिक जुड़ाव रहा है। ‘लोकसभा में आज गहरी पीड़ा और भारी मन के साथ खड़ा हूं’: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हादसे से पहले नहीं कहा गया MayDay, सामने आया पायलट का आखिरी मैसेज अब कौन होगा अगला CDS? सामने आया ये नाम