राहुल गांधी ने आदिवासियों पर बयान देकर गलती की? हाथ से निकल सकता है 'झारखंड'

रांची: हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने झारखंड विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को "आदिवासी विरोधी" बताया। उनका यह बयान रांची में आयोजित "संविधान सम्मान सम्मेलन" के दौरान आया, जहाँ उन्होंने भाजपा के नेताओं को आदिवासियों को "वनवासी" कहने पर आलोचना की। साथ ही, उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में आदिवासियों के बारे में केवल 10 से 15 पंक्तियों का जिक्र होने की बात भी कही। इस बयान के बाद भाजपा ने राहुल गांधी पर हमला बोला है, यह कहते हुए कि कांग्रेस ही वह पार्टी है जिसने आदिवासी समुदाय के इतिहास और संघर्षों को नजरअंदाज किया है।

 

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने राहुल गांधी की बातों का जोरदार विरोध करते हुए कहा कि राहुल ने जिस शिक्षा व्यवस्था की आलोचना की, वह कांग्रेस के शासनकाल में ही बनाई गई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने आदिवासियों के संघर्ष और उनके इतिहास को कभी गंभीरता से नहीं लिया। मरांडी ने यह भी याद दिलाया कि भगवान बिरसा मुंडा जैसे महान आदिवासी नेता को कांग्रेस ने नजरअंदाज किया। उनके अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने बिरसा मुंडा के गांव का दौरा किया और उन्हें उचित सम्मान दिया।

राहुल गांधी का बयान इस परिप्रेक्ष्य में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि उन्होंने अपने अध्ययन के दौरान उसी शिक्षा प्रणाली में पढ़ाई की थी, जिसे कांग्रेस ने स्थापित किया था। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब कांग्रेस के शासनकाल में आदिवासियों के बारे में इतना कम लिखा गया, तो राहुल गांधी इस पर सवाल उठाकर अपनी पार्टी की नीति और इतिहास पर ही चोट नहीं कर रहे हैं?

झारखंड के आदिवासी आंदोलन को लेकर भी राहुल गांधी की आलोचना की गई है। कई आदिवासी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस ने इस आंदोलन को कुचलने का काम किया था। चम्पाई सोरेन जैसे नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि कांग्रेस ने आदिवासियों के अधिकारों की कभी रक्षा नहीं की। उनकी दृष्टि में, 1951 की जनगणना में आदिवासियों को जो सम्मान मिला, वह 1961 में समाप्त हो गया, जब कांग्रेस की सरकार थी।

 

झारखंड में कांग्रेस के सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर भी आदिवासियों की जमीन हड़पने के आरोप लगाए जा रहे हैं। इसके अलावा, कर्नाटक में कांग्रेस पर आदिवासियों के धन का दुरुपयोग करने का भी आरोप है। इस प्रकार, कांग्रेस का इतिहास आदिवासियों के साथ संवेदनशीलता से जुड़ा हुआ नहीं दिखता है, जिससे राहुल गांधी की बातों की विश्वसनीयता और भी कम होती है।

राहुल गांधी का बयान न केवल राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, बल्कि यह उनके खुद के दल की छवि पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। क्या यह सच नहीं है कि जब वह आदिवासियों की बात कर रहे हैं, तो वह अपनी पार्टी के विगत पर भी सवाल उठा रहे हैं? क्या यह बयान उन्हें झारखंड में राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकता है?

राहुल गांधी के इस बयान के बाद यह सवाल उठता है कि क्या झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का भविष्य सुरक्षित है? भाजपा ने राहुल के बयानों को अपने लिए एक अवसर के रूप में देखा है और वे आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करने का दावा कर रहे हैं। यदि राहुल गांधी अपने बयानों के प्रति सतर्क नहीं रहते, तो यह चुनाव कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

राहुल गांधी का आदिवासियों पर दिया गया बयान केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह उनके और उनकी पार्टी के इतिहास का भी सवाल है। भाजपा ने इस मौके को अपने लाभ के लिए भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या राहुल गांधी अपने बयानों के प्रति सजग रहेंगे या यह झारखंड चुनाव में उनकी पार्टी के लिए बड़ा नुकसान बन जाएगा। आदिवासियों के मुद्दे पर उनकी पार्टी की छवि को सुधारने के लिए कांग्रेस को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, अन्यथा वे राजनीतिक खेल में पीछे रह जाएंगे।

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