भोपाल: सोमवार (18 दिसंबर) को, अनुभवी कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह 'कार्यकर्ताओं' शोमा सेन और उमर खालिद के समर्थन में सामने आए, जिन्हें भीमा कोरेगांव दंगों और दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों में उनकी संबंधित भूमिकाओं के लिए गिरफ्तार किया गया था। उमर खालिद की प्रशंसा करने वाले एक एक्स (पूर्व में ट्विटर) यूजर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, दिग्विजय सिंह ने दोनों आरोपियों के लिए त्वरित सुनवाई का आह्वान किया। उन्होंने दावा किया कि उमर खालिद और शोमा सेन को कथित तौर पर दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए बोलने के कारण जेल में डाल दिया गया है। दिग्विजय सिंह ने अपनी पोस्ट में कहा कि, 'परम आदरणीय माननीय CJI, क्या प्रोफेसर सोमा सेन और उमर खालिद को जेल में रखना न्याय है? मेरा हमेशा से मानना रहा है कि "न्याय में देरी न्याय न मिलने के बराबर है" भीमा कोरेगांव और CAA/NRC दो ऐसे मामले हैं। आरोपी कौन हैं? किसने दलितों के लिए बोला और किसने अल्पसंख्यकों के लिए बोला। क्या हमारा भारतीय संविधान SCST और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान नहीं करता है? क्या उनके लिए बोलना अपराध है?' एक तरह से कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने हिंसा भड़काने में दोनों आरोपियों की भूमिका को आसानी से नजरअंदाज करके उन्हें क्लीन चिट देने का प्रयास किया। अब जरा उन दोनों पर लगे आरोपों पर गौर करें, जिन्हे दिग्विजय सिंह दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए आवाज़ उठाने वाला बता रहे हैं। भीमा कोरेगांव दंगे और शोमा सेन की गिरफ़्तारी:- भीमा कोरेगांव मामला 31 दिसंबर, 2017 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव गांव के शनिवार वाडा में आयोजित 'एल्गार परिषद' नामक एक कार्यक्रम से संबंधित है। अगले दिन (1 जनवरी 2018) उस गांव में हिंसा भड़क उठी जहां लाखों दलित भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए एकत्र हुए थे। बता दें कि, वह लड़ाई 1818 में पेशवाओं के खिलाफ ब्रिटिश सेना ने जीती थी, इसमें दलित ब्रिटिश सेना की तरफ से लड़े थे और आज भी कुछ वामपंथियों के बहकावे में आकर अंग्रेज़ों से मिली उस हार का जश्न मनाते हैं, हालाँकि वे इसे पेशवाओं पर जीत के रूप में देखते हैं। 8 जनवरी, 2018 को पुणे पुलिस ने एक FIR दर्ज की और जांच से पता चला कि यह कार्यक्रम शहरी नक्सलियों (Urban Naxals) द्वारा आयोजित किया गया था। शोमा सेन, जिन्हें अब कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का समर्थन मिला है, को पुणे पुलिस ने 8 जून 2018 को भीमा कोरेगांव हिंसा में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उन पर माओवादी समूहों से संबंध के लिए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आरोप लगाया गया था। जिसके बाद सेन को राष्ट्रसंत तुकाडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय (RTMNU) में अंग्रेजी विभाग के प्रमुख के पद से निलंबित कर दिया गया। वह विवादास्पद संगठन, कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (CPDR) का भी हिस्सा रही हैं। यह भी गौर करें कि 2018 में पुणे पुलिस द्वारा एक पत्र का खुलासा किया गया था, जिसमें "रोड शो को निशाना बनाकर" "राजीव गांधी जैसी घटना" में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की साजिश का जिक्र था। हत्या की साजिश के सिलसिले में शोमा सेन का नाम भी सामने आया था। भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में स्टेन स्वामी, हनी बाबू, सुधा भारद्वाज, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्वेस, वरवरा राव और गौतम नवलखा सहित कई नक्सली विचारकों और शहरी नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया था। उमर खालिद और दिल्ली दंगों में उसकी भूमिका:- दिल्ली पुलिस ने 13 सितंबर, 2020 को उमर खालिद को गिरफ्तार किया और उसी साल 22 नवंबर को UAPA और भारतीय दंड संहिता (IPC) के कई प्रावधानों के तहत उस पर आरोप लगाया। खालिद के खिलाफ दर्ज FIR में UAPA की धारा 13, 16, 17, 18, शस्त्र अधिनियम की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम 1984 की धारा 3 और 4 जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। बता दें कि दिल्ली हिंदू विरोधी दंगा मामले के मुख्य आरोपी पूर्व आम आदमी पार्टी (AAP) पार्षद ताहिर हुसैन ने खुद उमर खालिद का नाम लिया है, जिसने शहर में दंगों की योजना बनाने के लिए उसे खालिद सैफी से मिलवाया था। साथ ही ताहिर हुसैन खुद कोर्ट में कबूल चुका है कि, उनका मकसद अधिक से अधिक हिन्दुओं को मारना था और उसके द्वारा जुटाई गई भीड़ हिन्दुओं को सबक सिखाना चाहती थी। इसी कारण इन दंगों को हिन्दू विरोधी दंगे भी कहा जाता है, जहाँ एक पक्ष ने पूरी तैयारी के साथ उन हिन्दुओं पर हमला कर दिया था, जो किसी भी साजिश से बेखबर थे। इससे पहले उमर खालिद के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली दंगे एक पूर्व नियोजित साजिश थी, जो पूर्व JNU छात्र (उमर खालिद) और उसके सहयोगियों द्वारा रची गई थी। साजिश के तहत उमर खालिद पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के दौरान दो अलग-अलग जगहों पर भड़काऊ भाषण देने और लोगों से सड़कों पर उतरने की अपील करने का आरोप है, ताकि इस प्रोपेगेंडा को दुनियाभर में फैलाया जा सके कि भारत में मुस्लिमों पर अत्याचार हो रहा है। कोर्ट में दाखिल की गई चार्जशीट में इस बात का भी जिक्र है कि उमर खालिद ने तत्कालीन AAP पार्षद ताहिर हुसैन से कहा था कि वह दंगों के लिए होने वाली फंडिंग को लेकर चिंतित न हो, क्योंकि (अब प्रतिबंधित संगठन) पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ({PFI) फंडिंग के साथ-साथ लॉजिस्टिक सपोर्ट भी मुहैया कराएगा। गौरतलब है कि सितंबर 2020 में गिरफ्तारी के बाद से खालिद की जमानत याचिका कई बार खारिज की जा चुकी है। अब इन दोनों आरोपियों में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए आवाज़ उठाने वाला व्यक्ति किस तरह नज़र आता है ? इसका जवाब तो वे ही दे सकते हैं। चंपत राय ने आडवाणी-मुरली मनोहर जोशी से किया राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में ना आने का अनुरोध, जानिए क्यों? सो रहे पति को पत्नी ने दी दर्दनाक मौत, फिर खुद थाने पहुंचकर बताई चौंकाने वाली वजह 'गुप्तांग काटा, आँखे निकाली...', पुजारी की निर्मम हत्या को लेकर हुआ चौंकाने वाला खुलासा, प्रेमिका ही निकली कातिल