उज्जैन: सिंहस्थ 2016 की शुरूआत के ही साथ जहां श्रद्धालु उत्साहित होकर उज्जैन में उमड़ रहे हैं वहीं बड़े पैमाने पर विभिन्न अखाड़ों के साधु - संत भी अमृत स्नान का दुर्लभ लाभ लेने में लगे हैं। सिंहस्थ क्षेत्र साधु - संतों के पांडालों से सजा हुआ है मगर इस सिंहस्थ में साधु संतों, व्यवस्थापकों के बीच विवाद भी कम नहीं हो रहे हैं। ऐसा ही एक विवाद श्री महाकालेश्वर की भस्मारती को लेकर हो रहा है। जी हां, श्री महाकालेश्वर की भस्मारती के दौरान उपयोग की जाने वाली भस्म को लेकर सिंहस्थ में पहुंचे श्री कापालिक बाबा और महानिर्वाणि अखाड़े के श्री महंत प्रकाश पुरी महाराज आमने सामने हो गए हैं। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार जहां कापालिक बाबा का मानना है कि श्री महाकालेश्वर की भस्मारती मुर्दे की चिता की भस्म से ही होती थी और वे जल्द ही चिता भस्म लेकर श्री महाकालेश्वर को लगाऐंगे मगर दूसरी ओर महानिर्वाणि अखाड़े के महंत स्वामी प्रकाश पुरी जी महाराज का कहना है कि वर्षों से गाय के गोबर से बने उपलों से तैयार की गई भस्म से ही भस्मारती की जाती है। ऐसे में चिता भस्म से आरती होने की बात ठीक नहीं है। उल्लेखनीय है कि श्री महाकालेश्वर में भस्मारती के दौरान श्री महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग पर भस्म रमाने का अधिकार महानिर्वाणि अखाड़े के महंत और उनके प्रतिनिधियों के ही साथ इस अखाड़े के साधुओं का है। ऐसे में किसी भी तरह की परंपरा में बदलाव की संभावना नज़र नहीं आती है। हालांकि इस मामले में विवाद बढ़ने और लोगों की मान्यताऐं अलग अलग होने से चर्चाऐं चल पड़ी हैं लेकिन मौजूदा व्यवस्था में तो तड़के 3 से 4 बजे होने वाली श्री महाकालेश्वर भस्मारती उसी विधान से होती है जिस तरह से मंदिर प्रबंध समिति और श्री महानिर्वाणि अखाड़े द्वारा इसे किए जाने की परंपरा है।