सनातन धर्म में स्कंद षष्ठी का व्रत बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के छठे पुत्र, भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। कुछ क्षेत्रों में इसे स्कंद षष्ठी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की उपासना भी की जाती है, जो लोगों को रोगों से मुक्ति, आरोग्य और समृद्धि प्रदान करती है। स्कंद षष्ठी का पर्व इस साल 09 सितंबर को मनाया जाएगा। कार्तिकेय की पूजा से सुख, सौभाग्य और सफलता प्राप्त होती है। स्कंद षष्ठी व्रत कथा पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती के भस्म होने के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए। इस स्थिति में सृष्टि शक्तिहीन हो गई और दैत्य तारकासुर ने देवताओं पर आतंक फैला दिया। देवताओं ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की कि केवल शिव पुत्र ही तारकासुर का अंत कर सकता है। देवताओं ने शिवजी को समाधि से जगाने का प्रयास किया और इसके लिए भगवान कामदेव की सहायता ली। कामदेव ने शिव पर फूल फेंकने से उनके मन में माता पार्वती के प्रति प्रेम की भावना जगा दी, जिससे शिवजी की तपस्या भंग हो गई। इस क्रोध में आकर शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली और कामदेव भस्म हो गए। तब शिव ने माता पार्वती के तप को परखा और उनके साथ विवाह किया। इसके बाद कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने तारकासुर का वध कर देवताओं को उनकी खोई हुई शक्ति लौटाई। माना जाता है कि कार्तिकेय का जन्म षष्ठी तिथि को हुआ था, इसलिए इस तिथि को कार्तिकेय की पूजा की जाती है। स्कंद षष्ठी व्रत पारण जो लोग स्कंद षष्ठी का व्रत रखते हैं, उन्हें अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण करके व्रत समाप्त करना चाहिए। पारण से पहले स्नान करना, ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान करना महत्वपूर्ण है। इसके बाद व्रत समाप्त किया जा सकता है। स्कंद षष्ठी का महत्व स्कंद षष्ठी के दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से भगवान कार्तिकेय की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत शनि दोष से मुक्ति दिलाने, संतान प्राप्ति, और जीवन में सुख-समृद्धि बनाए रखने में सहायक होता है। इस दिन गरीबों को विशेष चीजों का दान करने से भी पुण्य प्राप्त होता है। गुरु के वक्री होने से चमकेगी इन राशियों की किस्मत, 2025 तक होगा फायदा पितृपक्ष से पहले आपको मिल रहे हैं ये संकेत, तो समझ जाइए पितृ हैं अतृप्त आखिर क्यों रात के समय नहीं करते हैं अंतिम संस्कार? यहाँ जानिए