मुनिश्री समतासागर ने कहा कि जो लोग संयम के मार्ग पर चलते हैं सरल स्वभावी होते हैं वह निरंतर प्रगति को प्राप्त करते हैं। हमें कर्मप्रधान होना होगा। कर्मों की प्रधानता ही व्यक्ति को महान बनाती है। कर्म किये जाओ, फल की चिंता मत रखो, कर्म अच्छे होंगे तो फल भी अच्छा ही मिलेगा जुनून हमें भगवान की भक्ति में रखना होगा। मोक्ष मार्ग में लगाना होगा। तभी जाकर हमारा मार्ग प्रशस्त होगा। जिस प्रकार बीज को सही समय पर बोने, उचित देखरेख करने, सही समय पर काटने पर उचित लाभ मिलता है मंदिर जब छोटा लगने लगे तो उसे तत्काल बड़े मंदिर में परिवर्तित करना आवश्यक होता है। क्योंकि व्यक्ति के मन में धर्म की भावना मंदिर पहुंचने के उपरांत ही आती है। व्यक्ति को अपना निर्वाण भी अपने वक्त के हिसाब से करते रहना चाहिये। तभी जाकर उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। जिस प्रकार नदी का पानी प्रवाहमान रहने से शुध्द रहता है उसी प्रकार इंसान को भी अपनी शुध्दता के लिये आचार-विचार, विहार और धर्म के मार्ग पर हमेशा चलते रहना चाहिये। बहुत कुछ कहता है शरीर के अंगों का फड़कना