क्या आप जानते है श्राद्ध का सिलसिला कब और कहाॅं से शुरू हुआ

अभी हाल ही में गणेश जी का विसर्जन किया गया और घरों में पूर्वजों को स्थापित किया गया। इतना ही नहीं जगह-जगह पर पूर्वजों के लिए श्राद्ध किये जा रहें। आमतौर पर हो सकता है की शायद आप भी अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते होंगे लेकिन क्या आप यह जानते हैं की हम जो अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं इसकी शुरूआत किसने की और सबसे पहले किसने श्राद्ध किया होगा। तो चलिए आज हम आपको इस विषय में बताते है कि आखिर यह श्राद्ध का सिलसिला कहाॅं से शुरू हुआ।

हिंदू घरों में हर वर्ष अपने पितरों और पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति  के लिए श्राद्ध किया जाता है। श्राद्धों में सभी श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि सबसे पहले श्राद्ध किसने और किसका किया था  महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध में बताया कि सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था।

इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया और पितरों को भोजन कराया लगातार श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए। इसके साथ ही श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अजीर्ण ;भोजन न पचना रोग हो गया और इससे उन्हें कष्ट होने लगा। तब वे ब्रह्माजी के पास गए और उनसे कहा कि. श्राद्ध का अन्न खाते-खाते हमें अजीर्ण रोग हो गया हैए इससे हमें कष्ट हो रहा है आप हमारा कल्याण कीजिए। 

देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी बोले. मेरे निकट अग्निदेव बैठे हैं ये ही आपका कल्याण करेंगे। अग्निदेव बोले. देवताओं और पितरों। अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण दूर हो जाएगा। यह सुनकर देवता व पितर प्रसन्न हुए। इसलिए श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भाग दिया जाता है। महर्षि निमि द्वारा शुरू की गई श्राद्ध की परंपरा को निभाने के लिए अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे और ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे।

 

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