हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है की जब कोई शुभ धार्मिक कार्य करते है तो सबसे पहले श्री गणेश का नाम लिया जाता है. आज हम भगवान श्री गणेश की पौराणिक कथाओ के बारे में जानेंगे. देवभूमि उत्तराखंड में उत्तरकाशी से 40 किमी दूर स्थित डोडीताल विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है की यहाँ भगवान् गणेश का जन्म हुआ था डोडीताल में मां अन्नपूर्णा का सदियों पुराना मंदिर है। यहां मां पार्वती की पूजा मां अन्नपूर्णा के रूप में की जाती है। कहा जाता है की बहुत साल पहले की बात है जब प्रथ्वी पर राक्षसों का आतंक बढ़ गया था तब भगवान शिव देवो की सहायता करने के लिए शिव लोक से बहुत दूर चले गए थे माता पार्वती शिव भगवान की धर्म पत्नी शिव लोक में अकेली थी. जब माता पार्वती को सनान करने की इच्छा हुई तो उन्हें सोचा की अगर में स्नान करने के लिए चली गई तो शिव लोक की रक्षा कोन करेगा. उन्हें डर था की कोई उनके अनुपस्तिथि में शिव लोक में अनाधिक्रत पवेश न करे. इसलिए माता पार्वती ने शिव लोक की रक्षा के लिए अपनी शक्ति से एक बालक का निर्माण किया और उनका नाम गणेश रख दिया. और उन्हें असीमित शक्तियों से नेयुक्त कर दिया. और कहा की देखो पुत्र में स्नान करने जा रही हूँ, मेरी अनुमति के बिना यहाँ कोई भी प्रवेश नहीं करना चाहिए. इसी के साथ माता पार्वती स्नान करने चली गई और गणेश जी पहरेदारी करने लगे. उसी समय भगवान शिव युद्ध में विजयी प्राप्त करके लोटे ही थे और वे युद्ध में वजयी प्राप्त की खुश खबरी माता पार्वती को सुनाने जा रहे थे की शिव जी के प्रभुत्व से अनजान बाल गणेश ने उन्हें घर के अन्दर आने से रोका, अपने ही घर के अंदर आने से रोके जाने पर शिव जी को क्रोध आया और उन्होंने बाल गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया. माता पार्वती जब स्नान करके आई तो उन्होंने देखा की बाल गणेश म्रत अवस्था में और सर धड से अलग यह देखकर माता पार्वती की चीखे निकल गई और उसके बाद माता पार्वती ने शिव जी बताया की ये आपका ही पुत्र है और मैंने ही इसे आज्ञा दी थी की किसी को भी यहाँ प्रवेश न करने दे. इसमें इस बालक का क्या दोष है- आप इसे जीवित कीजिये फिर भगवान शिव ने हाथी का सर बाल गणेश के धड़ से जोड़ दिया. वास्तु की इन बातो का ध्यान रखना है ज़रूरी हर प्रकार के वास्तुदोषों को दूर कर सकते है गणेशजी बच्चे को नजरदोष से बचाने के कुछ आसान उपाय