हिन्दू धर्म में कई देवी देवता है किन्तु देवों में ब्रम्हा, विष्णु, महेश त्रिदेव का स्थान सर्वोपरि है. आज हम इन्ही त्रिदेव में से एक देव महेश अर्थात शिव के बारे में बात करेंगे. इन्हें इनके भक्त कई सारे नामों से भी जानते है, जैसे शंकर भगवान, महाकाल, नीलकंठ, महादेव, भोलेनाथ आदि. भगवान शंकर की पूजा हमारे द्वारा दो रूपों में की जाती है. इनका दूसरा रूप शिवलिंग है इनके इस रूप की पूजा करने के लिए दूध का उपयोग किया जाता है तथा शिवलिंग पर दूध अभिषेक किया जाता है. आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि भगवान शंकर को दूध क्यों चढ़ाया जाता है. चलिए हम आपके प्रश्न का उत्तर आपको बता देते है. पौराणिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन किया जा रहा था तब समुद्र में से कई प्रकार की चीजे प्रकट हुई. किन्तु जब इसमें से हलाहल विष की उत्पत्ति हुई तब सभी देव दानव भयभीत हो गए थे. किसी में भी इस विष को पीने की क्षमता नहीं थी तब सभी देवों ने भगवान शिव का आह्वान किया. क्योकि केवल वही थे जो इस समस्या का अंत कर सकते थे. जब भगवान शंकर ने देखा कि इस विष का प्रभाव सम्पूर्ण सृष्टि पर पड़ रहा है तथा इस विष के प्रभाव से सम्पूर्ण सृष्टि का अंत होना निश्चित है. तो सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए भगवान शंकर ने विष को स्वयं पी लिया. और इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया जिससे उनका कंठ नीला हो गया इसी वजह से उनका नाम नीलकंठ हो गया. विष इतना तीव्र एवं घातक था कि इसका प्रभाव शिव पर पड़ने लगा. विष की इस तीव्रता को शांत करने के लिए सभी देवताओं ने उनसे दूध ग्रहण करने का आग्रह किया. तब उनके इस आग्रह को मानकर भगवान शिव ने दूध ग्रहण किया. जिससे उस विष की तीव्रता काफी कम हो गई. तभी से भगवान शिव को दूध अधिक प्रिय है इसलिए उनके भक्त उन्हें दूध का अभिषेक करते है.