शास्त्र के अनुसार “वट वृक्ष” दीर्घायु व अमरत्व बोध के प्रतीक माने जाते है भगवान बुद्ध को भी इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजा जाता है महिलाए व्रत पूजन के समय इस वट वृक्ष में सूत के धागे बांधकर परिक्रमा करती है. वट वृक्ष की एक पौराणिक कथा है जो हम आपको बताते है. पौराणिक कथाओं के आनुसार भद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नही थी उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए मंत्रो उच्चारण के साथ साथ एक लाख अहुतिया भी प्रदान की थी अठारह वर्षो तक यह कार्यक्रम चलते रहा इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर राजा को वर दिया. की “हे राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी” और सावित्री देवी के आशीर्वाद से कुछ दिनों बाद राजा को एक तेजस्वी कन्या पैदा हुई और उसका नाम सावित्री रखा. कन्या बचपन से ही बहुत सुन्दर थी जब कन्या बड़ी हुई तो राजा को उस कन्या के विवाह की चिंता सताने लगी वह अपनी पुत्री के लिए योग वर ढूँढने लगे लेकिन उन्हें योग वर नहीं मिलने के कारण राजा दुखी हो गया और इसी कारण राजा ने अपनी पुत्री को ही वर ढूँढने लिये भेज दिया कन्या भटकते भटकते तपोवन जा पहुची, वंहा साल्व देश के राजा घुमत्सेन रहते थे जो की उनका राज्य किसी ने छीन लिया था इसलिए वे तपोवन में निवास करने लगे. सावित्री ने के राजा घुमत्सेन के पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में स्वीकार किया था, कहा जाता है की साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द गिर्द था. सत्यवान अल्पायु थे वे वेद ज्ञाता थे नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दि थी परन्तु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया. अपने पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए थे तब सावित्री ने वट वृक्ष की घोर तपस्या व पूजा की थी जिसका फल उन्हें बाद में मिला. ये उपाय दूर करते है वैवाहिक जीवन का तनाव जीवन की समस्याओ को दूर करते है शिवजी के ये उपाय एकादशी पर इन तरीको से करे विष्णु जी की पूजा धन की कमी को दूर करता है दूध का ये उपाय