इंदौर : शहर में बड़ी लापरवाही आई सामने, 17 रेसिडेंट डॉक्टर्स की 10 दिन से नहीं मिली जांच रिपोर्ट

देश में कई राज्यों को कोरोना ने अपना शिकार बनाया है. लेकिन कोरोना के कहर में सबसे अधिक मध्यप्रदेश प्रभावित हो रहा है. राज्य के दो शहर इंदौर और भोपाल कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित है. वही, प्रदेश के इंदौर शहर में संक्रमित मरीज और मृतकों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसके बावजूद प्रशासनिक चूकों की लिस्ट लगातार लंबी ही होती जा रही है. ताजा मामला कोरोना वायरस पीड़ितों का इलाज कर रहे डॉक्टरों से संबंधित है. शहर के 17 डॉक्टरों की कोरोना जांच की रिपोर्ट दस दिन बीतने के बाद भी नहीं मिल पाई है. ये सभी डॉक्टर लगातार डर के बीच भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ रहे और मरीजों के इलाज मेंदिन-रात लगे हुए हैं, लेकिन लगता है प्रशासन को उनकी सुध ही नहीं है. मामला गंभीर लापरवाही का इसलिए भी है क्योंकि इसका संबंध प्रदेश के सबसे बड़े एम वाय मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल से है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि बीते 13 अप्रैल को डॉक्टरों के सैंपल लिए गए थे. अब तक 17 डॉक्टर्स की रिपोर्ट पेंडिंग है. इसके बावजूद वे मरीजों के इलाज में लगातार लगे हुए हैं. डॉक्टरों को अपने साथ मरीजों की चिंता भी है. शहर में अब तक कई डॉक्टर वायरस की चपेट में आ चुके हैं. ऐसे में डर इस बात का है कि इन 17 डॉक्टरों में से किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो पता नहीं कितने लोग उससे संक्रमित हो चुके होंगे.

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लॉकडाउन और कोरोना के इतने बुरे संक्रमण के बाद भी मेडिकल कॉलेज के रेसिडेंट डॉक्टरों, तथा जूनियरों डॉक्टर्स के जांच सैम्पल लेने के बाद उसकी निगरानी के लिए किसी फैकल्टी को नोडल अधिकारी नहीं बनाया गया है. यदि कोई नोडल अधिकारी नियुक्त होता तो डॉक्टरों के स्वास्थ्य से संबंधित सारे कामों के लिए समन्वय बनाना आसान होता. नोडल अधिकारी डॉक्टरों की महामारी से सुरक्षा के लिए सभी प्रबंध करता जैसे कितने सीनियर डॉक्टर, रेसिडेंट, नर्सेस, पैरामेडिकल स्टाफ आदि के सैंपल लिए गए, उनकी क्लीनिकल सिचुएशन क्या है आदि. उनके जांच सैम्पल मार्क करके जल्दी टेस्टिंग के लिए माइक्रोबायोलॉजी विभाग से तालमेल करना, क्वारंटाइन सहित अन्य व्यवस्था करने के लिए कलेक्टर द्वारा नियुक्त अधिकारी से बात करना व उनकी रिपोर्ट डीन, एम वाय हॉस्पिटल के अधीक्षक, सम्बन्धित विभागाध्यक्ष, मीडिया व जिला प्रशासन को देना- ऐसे सभी काम उसकी जिम्मेदारी होते लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने ऐसी कोई व्यवस्था ही नही की जबकि ये नियुक्ति जरूरी है.

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