मुंबई: बांग्लादेश में 15 वर्षों तक शासन करने के बाद, देश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को इस्तीफा देने और देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। वही मुजीबुर रहमान, जिनके सामने उनके परिवार के 17 लोगों को कट्टरपंथियों द्वारा मार दिया गया और ये सब देखने के बाद उनकी भी हत्या कर दी गई। उस समय शेख हसीना महज 28 साल की थीं, जो जान बचाकर भागीं और भारत के रास्ते जर्मनी चली गईं। 1981 में शेख हसीना ने फिर वहां पहुंचकर लोकतंत्र की आवाज़ बनीं। सेना द्वारा शासित देश में उन्हें लंबे समय तक नज़रबंद रखा गया। 1996 लोकतांत्रिक तरीके से जीत दर्ज कर उन्होंने पहली बार अपनी सरकार बनाई, 2001 में उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया था, 2008 के चुनाव में वह प्रचंड जीत के साथ फिर सत्ता में लौट आईं। और तब से लगातार बांग्लादेश पर शासन कर रहीं थीं। उनके कार्यकाल में बांग्लादेश, पाकिस्तान से बेहतर तरक्की कर रहा था। लेकिन, शायद कट्टरपंथियों को ये पसंद नहीं आया, शेख हसीना अपने देश के अल्पसंख्यकों के प्रति नरम रुख रखतीं थीं, भारत के साथ मधुर संबंध रखती थी। ये पाकिस्तान, चीन के साथ ही बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन जमात ए इस्लामी को भी गवारा नहीं था। पिछले महीने स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को नौकरियों 30 फीसद कोटा देने का फैसला बांग्लादेश सरकार ने लिया, जिससे कट्टरपंथियों को मौका मिल गया। सड़कों पर आगज़नी, पथराव और भयंकर हिंसा देखने को मिली, इसकी आड़ में अल्पसंख्यक हिन्दुओं को भी निशाना बनाया गया। राजधानी ढाका की सड़कें, जो पिछले लगभग 20 दिनों से हिंसा और मौत से दहल रही थीं, शेख हसीना के देश से बाहर निकलने के बाद जश्न में डूब गईं। शेख हसीना ने फिलहाल भारत में हैं। लेकिन, बांग्लादेश में जो हुआ, उससे भारत का विपक्ष कहीं ना कहीं खुश नज़र आ रहा है, उसके बयानों में ऐसे उपद्रव को भारत सरकार के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करने की मंशा दिख रही है। शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत का कहना है कि शेख हसीना प्रधानमंत्री के रूप में नाकाम थीं और बांग्लादेश में तानाशाही चल रही थी, जैसे भारत में है। भारत में जातिगत जनगणना, आरक्षण बढ़ाने का समर्थन करने वाले नेता को बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को मिल रहा कोटा तानाशाही लग रहा है। दरअसल, वे इसे भारत सरकार के खिलाफ एक हथियार के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने अपने बयान में प्रदर्शन के वास्तविक मुद्दे से ध्यान भटकाते हुए कहा कि, 'बांग्लादेश में भारत जैसे हालात पैदा हो गए, वहां विपक्ष की आवाज दबा दी गई, चुनाव में धांधली हुई। विरोधियों को जेल में डाला गया, कई लोग मारे गये। संसद में अवांछित कानून पारित कर दिए गए। लोग महंगाई से जूझ रहे थे और शेख हसीना नाकाम प्रधामंत्री रहीं। उन्होंने लोकतंत्र का मुखौटा पहनकर तानाशाही से देश चलाया। तानाशाही करने वालों और देश की आजादी को खतरे में डालने वालों को देश की जनता माफ नहीं करती, भारत के शासकों को भी इसके असर के बारे में सोचना चाहिए।' अगर संजय राउत की बात मानें तो, जनवरी 2024 में ही बांग्लादेश में चुनाव हुए थे, जिसमे शेख हसीना ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। अगर वहां की जनता नहीं चाहती तो, क्या शेख हसीना जीत सकती थी ? इतनी तानाशाही थी, तो उसी समय जनता सड़कों पर उतर जाती और चुनाव ही ना होने देती। आज भी तो प्रधानमंत्री आवास में घुसी ही है। दरअसल, आंदोलन में प्रमुख मुद्दा था, आरक्षण का, जो 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को दिया जा रहा था। विवाद के बाद शेख हसीना ने फैसला वापस भी ले लिया था, लेकिन कट्टरपंथी ताकतों को मुद्दा मिल चुका था। प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात ए इस्लामी ने आंदोलन को हाईजैक कर लिया और स्थिति बेकाबू हो गई। इस संगठन को शेख हसीना ने कुछ दिनों पहले ही प्रतिबंधित किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना था, क्योंकि जमात ए इस्लामी की गतिविधियां कट्टरपंथी थीं। अब अगर, संजय राउत, शेख हसीना को तानाशाह कह रहे हैं, केवल ये दिखाने के लिए कि वे भारत सरकार पर निशाना साध सकें, तो वे भारत की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। क्योंकि, अब खालिदा जिया वहां की प्रधानमंत्री बनने जा रहीं हैं। खालिदा जिया, उस पाकिस्तानी कमांडर जियाउर रहमान की बेटी हैं, जिसने कश्मीर युद्ध में भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। जियाउर रहमान बांग्लादेश के राष्ट्रपति भी रहे, और उनकी बेटी खालिदा वहां की पहली महिला प्रधानमंत्री। भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के अनुसार, बांग्लादेश खालिदा जिया के कार्यकाल (2001-2005) के दौरान दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश था। खालिदा जिया को कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में 17 साल जेल की सजा सुनाई थी, लेकिन अब वे बाहर आ रहीं हैं और बांग्लादेश पर शासन करेंगी। खालिदा जिया के साथ जमात ए इस्लामी है और दोनों भारत के कट्टर शत्रु हैं, और चीन के मित्र। ऐसे में संजय राउत के बयान दर्शाते हैं कि, वे भारत समर्थक शेख हसीना के हटने की ख़ुशी मना रहे हैं और भारत विरोधी खालिदा जिया का स्वागत कर रहे हैं। हालाँकि, ये तथ्य है कि, अगले कुछ दिनों में बांग्लादेश में आतंकवाद तेजी से पैर पसारेगा, कट्टरपंथी ताकतें हावी होंगी, जिसे वहां रहने वाले अल्पसंख्यक तो भुगतेंगे ही, भारत पर भी ख़तरा मंडराता रहेगा। शेख हसीना के इस्तीफे से बांग्लादेशी कट्टरपंथियों में जश्न, लेकिन भारतीय वामपंथी क्यों खुश ? भारत के लिए चिंता की बात ! आपको 'अमिताभ' का मतलब भी पता है..! आखिर उपराष्ट्रपति धनखड़ पर क्यों भड़की जया बच्चन ? Video 'जो देश शेख हसीना को शरण दे, उसका..', प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी का बड़ा ऐलान, बांग्लादेश में हिन्दुओं का नरसंहार !