नई दिल्ली: दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष और इस्लामिक लेखक जफरुल इस्लाम ने कतर द्वारा पूर्व भारतीय नौसैनिकों को दी गई मौत की सजा को जायज ठहराकर विवाद खड़ा कर दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक ट्वीट में, उन्होंने उन भारतीय नौसैनिकों के प्रति कोई रहम न करने की बात कही है, जिन्हें इज़राइल की ओर से जासूसी करने के आरोप में कतर में मौत की सजा सुनाई गई थी। जफरुल इस्लाम ने न सिर्फ दोषी नौसैनिकों के प्रति सहानुभूति की कमी का आह्वान किया, बल्कि भारत से कतर में अपने नौसैनिकों का बचाव करने के बजाय मामले की जांच करने का भी आग्रह किया। उनके इस बयान से भारतीय नौसेना पर उनके रुख और उनके विचारों ने उनकी देशभक्ति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बता दें कि, हाल ही में, कतर में आठ पूर्व भारतीय नौसैनिकों को मौत की सजा सुनाई गई थी, और हालांकि आरोपों के बारे में आधिकारिक जानकारी का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन माना जाता है कि यह सजा इजरायल के लिए कथित जासूसी के लिए दी गई थी। क़तर ने न तो मामले का विवरण दिया है और न ही कोई सबूत पेश किया है। जफरुल इस्लाम की टिप्पणियाँ विवादित के साथ जहरीली भी हैं, क्योंकि उन्होंने भारतीय नौसैनिकों द्वारा इज़राइल के लिए जासूसी करने के आरोपों को स्वीकार कर लिया है और इसमें शामिल व्यक्तियों के प्रति कोई रहम नहीं दिखाने का आह्वान किया है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो, उनके बयान इस मामले पर भारत से नहीं, बल्कि कतर के रुख से मेल खाते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जफरुल इस्लाम ने अपने ट्वीट में न केवल भारत और उसकी नौसेना के प्रति अपनी स्पष्ट नापसंदगी प्रदर्शित की, बल्कि इज़राइल के प्रति अपनी नकारात्मक भावनाओं को भी प्रकट किया। उन्होंने भारत सरकार से आरोपी नौसैनिकों को सहायता देने के बजाय मामले की जांच शुरू करने का आग्रह किया। भारत सरकार पहले ही नौसैनिकों पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बता कर खारिज कर चुकी है और कह चुकी है कि वो अपने पूर्व नौसेना अफसरों को बचाने के लिए हर कानूनी रास्ता अपनाएगी। बता दें कि, यह पहली बार नहीं है जब जफरुल इस्लाम ने भारत के खिलाफ अरब देशों के प्रति समर्थन दिखाया है। 2020 में, उन्होंने फेसबुक पर एक संदेश पोस्ट किया था, जिसमें भारतीय मुसलमानों को समर्थन देने के लिए कुवैत को धन्यवाद दिया गया था। उसी पोस्ट में, उन्होंने भारतीय हिंदुओं को 'कट्टर हिंदुत्व' कहा और सुझाव दिया कि उन्होंने इस बात पर विचार नहीं किया कि अरब देश भारत में मुसलमानों के खिलाफ अत्याचारों पर कैसे प्रतिक्रिया दे सकते हैं। इसके अलावा, उस पोस्ट में, उन्होंने भगोड़े इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक की प्रशंसा की और हिंदुओं को परोक्ष धमकी देते हुए चेतावनी दी कि यदि भारतीय मुसलमानों ने उनके खिलाफ अत्याचार के जवाब में अरबों से समर्थन मांगा, तो इसके गंभीर परिणाम 'हिंदुत्व कट्टरपंथियों' के लिए होंगे। उन्होंने कहा था कि, यदि भारत के मुसलमानों ने अपने ऊपर हुए अत्याचारों की शिकायत अरब से कर दी, तो जलजला आ जाएगा और धर्मांध हिन्दुओं को इसके परिणाम भुगतने होंगे। उनके इस बयान के बाद दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था। जफरुल ने बाद में अपनी टिप्पणियों के लिए माफी मांग ली थी और इसे 'अनुपात से बाहर' बताया था। इसके अलावा, अप्रैल 2022 में, जफरुल ने मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी के दौरान हिंदुओं पर हुए हमले को भी झूठा बताया था। गौर करने वाली बात ये है कि, दिल्ली की केजरीवाल सरकार के अंतर्गत अल्पसंख्यक आयोग संभाल चुके जफरुल इस्लाम की हाल ही में कतर में भारतीय नौसैनिक अधिकारियों की मौत की सजा की वकालत ऐसे समय में आई है, जब भारत सरकार उनकी रिहाई सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है। ऐसे में जफरुल के बयान उनके गृह देश के हितों और मूल्यों के साथ उनके जुड़ाव पर सवाल उठाती है। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष रहते हुए ज़फरुल इस्लाम, मुस्लिमों को क्या यही शिक्षा देते होंगे ? इस संवेदनशील मामले पर उनके रुख ने उनकी देशभक्ति और वह किस हद तक भारत के हितों और कल्याण को प्राथमिकता देते हैं, इस बारे में चिंताएं पैदा कर दी हैं। मीट की दूकान चलाना है तो 'इमाम' से अनुमति लो..! दिल्ली में नया फरमान, दलित दुकानदारों के लिए 'झटका' दिवाली आई नहीं, पटाखों पर भी है पूर्ण बैन, फिर भी दिल्ली की हवा 'खतरनाक' स्तर पर आज एथिक्स कमिटी के सामने पेश होंगी महुआ मोइत्रा, मान चुकी हैं हीरानंदानी को ID-पासवर्ड देने की बात, क्या जाएगी सांसदी ?