अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने मोरबी पुल हादसे पर स्वत: संज्ञान ली गई जनहित याचिका पर मंगलवार (14 नवंबर) को सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने टेंडर जारी करने में पाई गईं खामियों को लेकर प्रदेश सरकार और मोरबी नगर निगम को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि मोरबी नगर पालिका को होशियारी दिखाने की आवश्यकता नहीं है। प्रधान न्यायाधीश (CJI) अरविंद कुमार के नेतृत्व वाली बेंच ने सवाल किया कि, '15 जून 2016 को कॉन्ट्रैक्टर का टर्म ख़त्म हो जाने के बाद भी नया टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया? बगैर टेंडर के एक व्यक्ति के प्रति राज्य की तरफ से कितनी उदारता दिखाई गई? कोर्ट ने कहा कि राज्य को उन कारणों को बताना चाहिए कि आखिर क्यों नगर निकाय के मुख्य अधिकारी के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की गई? अदालत ने राज्य सरकार से यह भी पुछा कि क्या उन लोगों के परिवार के सदस्य को मदद के रूप में नौकरी दी जा सकती है, जो अपने परिवार में अकेले कमाने वाले थे, मगर इस हादसे में उनकी मौत हो गई। वहीं, राज्य मानवाधिकार आयोग के वकील ने अदालत को बताया कि इसकी पुष्टि की जा रही है कि संबंधित परिवारों को मुआवजा दिया गया है या नहीं। उच्च न्यायालय में अब इस मामले पर अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी। बेंच ने सवाल किया है कि पहला एग्रीमेंट ख़त्म हो जाने के बाद किस आधार पर ठेकेदार को पुल को तीन वर्षों तक ऑपरेट करने की अनुमति दी गई? कोर्ट ने कहा कि इन सवालों का जवाब हलफनामे में अगली सुनवाई के दौरान देना चाहिए, जो कि दो सप्ताह के बाद होगी। पंजाब-हरियाणा सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, बाढ़ की समस्या को लेकर कही ये बात जल्द ही इंडो-ब्रिटिश फिल्म में काम करेंगी ऋचा काशी में मनाई जाएगी 'भैरव दिवाली' ! गंगा के घाटों पर जलेंगे 100008 दीप