लोकसभा और विधानसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस की नीति उसके लिए गले की फांस बनती जा रही है। कांग्रेस इस समय जिस रवैये पर चल रही है, उससे तो यही लगता है कि 2019 के आम चुनाव के साथ—साथ विधानसभा चुनावों में एक बार फिर भाजपा अपना परचम लहरा सकती है। दरअसल, कांग्रेस जिस महागठबंधन के जरिए सत्ता हासिल करने की कोशिश कर रही थी, अब वही महागठबंधन टूटता नजर आ रहा है। मध्यप्रदेश में सीटों के बंटवारे को लेकर मतभेद के बीच बसपा ने कांग्रेस से अलग होने का फैसला कर लिया है, तो छत्तीसगढ़ में बसपा ने कांग्रेस से अलग हुए अजीत जोगी से हाथ मिलाया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस के रवैये को लेकर साफ शब्दों में कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ने का ऐलान भी कर दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का जो रवैया है, उसे देखते हुए अब बसपा किसी भी कीमत पर कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी विधानसभा चुनावों में यह मतभेद कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव में भारी पड़ सकता है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि बसपा के हाथ छोड़ने के बाद अब कांग्रेस 'साइकिल' पर सवार होकर चुनाव का रास्ता तय करना चाहती है और इसके लिए पार्टी ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से भी बात की है। हालांकि अखिलेश ने अभी अपना मत स्पष्ट नहीं किया है। मायावती का कांग्रेस ने अलग होना जहां कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब है, वहीं बीजेपी इससे बेहद खुश नजर आ रही है। दरअसल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी की कांग्रेस से सीधी टक्कर है और अगर मायावती कांग्रेस के साथ रहतीं, तो एससी—एसटी एक्ट लाकर बीजेपी ने दलितों को लुभाने का जो पांसा फेंका था, वह उलटा पड़ जाता और अधिकांश दलित वोट कांग्रेस के खाते में जाने का डर था। लेकिन अब जब मायावती कांग्रेस से अलग हो गई हैं, तो बीजेपी का यह डर काफी हद तक खत्म हो गया है और उसे दलित वोट मिलने की उम्मीद पहले से ज्यादा बढ़ गई है। इतना ही नहीं मायावती के अलग होते ही बीजेपी ने समाजवादी पार्टी से अलग हुए शिवपाल यादव को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिशें करनी शुरू कर दी हैं। उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने शिवपाल को अपने सेक्युलर मोर्चा को बीजेपी में विलय करने का न्यौता दिया है। अगर शिवपाल बीजेपी में शामिल हो जाते हैं, तो यह समझौता उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए बड़ा फायदा साबित हो सकता है। शिवपाल के बीजेपी में मिलने से परंपरागत समाजवादी वोट भी बीजेपी को मिलेंगे, जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभा सकते हैं। कुल मिलाकर इस समय जो स्थितियां बन रही हैं, उन्हें देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस की चुनावी रणनीति उसके लिए ही खतरा बन रही है। कांग्रेस को चाहिए कि अगर वह बीजेपी को जड़ से उखाड़ना चाहती है, तो उसे अगले चुनावों तक महागठबंधन के साथियों को संभालकर रखना चाहिए अन्यथा अगले चुनावों में उसकी बीजेपी के खिलाफ जाने की नीति ही बीजेपी के लिए चुनावी सीढ़ी साबित हो सकती है, जिस पर चढ़कर फिर से बीजेपी सत्ता के शिखर पर काबिज हो सकती है। जानकारी और भी अमित शाह बनेंगे बीजेपी के मसीहा? राहुल को ले डूबेगी पाक सियासत!