एक लुटी हुई बस्ती की कहानी.... बजी घंटियाँ ऊँचे मीनार गूँजे सुनहरी सदाओं ने उजली हवाओं की पेशानियों की रहमत के बरकत के पैग़ाम लिक्खे— वुजू करती तुम्हें खुली कोहनियों तक मुनव्वर हुईं— झिलमिलाए अँधेरे --भजन गाते आँचल ने पूजा की थाली से बाँटे सवेरे खुले द्वार ! बच्चों ने बस्ता उठाया बुजुर्गों ने— पेड़ों को पानी पिलाया --नये हादिसों की खबर ले के बस्ती की गलियों में अख़बार आया खुदा की हिफाज़त की ख़ातिर पुलिस ने पुजारी के मन्दिर में मुल्ला की मस्जिद में पहरा लगाया। खुद इन मकानों में लेकिन कहाँ था सुलगते मुहल्लों के दीवारों दर में वही जल रहा था जहाँ तक धुवाँ था -निदा फ़ाज़ली