नई दिल्ली: कांग्रेस के दिग्गज नेता और सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर दिया है। उन्होंने इस दौरान चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर ‘बढ़ती चिंता’ पर फोकस करते हुए बिल पेश किया है कि, जिसमें एक उच्च स्तरीय समिति बनाने की मांग की गई है जो कि प्रधानमंत्री की अगुवाई में विपक्ष के नेता, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया मिलकर मुख्य निर्वाचन आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेंगे। संयोग से बिल में निर्वाचन आयोग को और भी अधिक पावर देने की बात कही गई है ताकि, चुनाव आयोग, पंजीकृत सियासी दलों को भी रेगुलेट, मोनिटर और निरीक्षण कर सकें। बिल में मांग की गई है कि सियासी दलों के आंतरिक चुनावों में भी निर्वाचन आयोग का दखल होना चाहिए। उन्होंने इस दौरान कहा कि कई बड़ी पार्टियां के ‘अपारदर्शी और सख्त’ हो गई हैं। इस कारण उनके आंतरिक मामलों में भी सुधार लाने की आवश्यकता है, ताकि पारदर्शिता लाई जा सके। इससे वह पार्टियां अकाउंटेबल होंगी और उनके अंदर भी नियमों का पालन हो सकेगा। रिपोर्ट के अनुसार, जून में एक आर्टिकल में तिवारी ने यही तर्क दिया था और कहा था कि वह वक़्त आ गया है जब कि चुनाव आयोग को देश के सियासी दलों के अंदर भी लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इसके लिए उन्हें एक्सटरनल मॉनिटर अपॉइंट करना चाहिए और अन्य इनोवेटिव मैकेनिज्म लागू करने चाहिए। संसद में पेश किए गए बिल में मांग की गई है कि जो कमेटी बनाई जाए, उसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, नेता प्रतिपक्ष या फ्लोर लीडर दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा से, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) के साथ अन्य दो सीनियर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होना चाहिए। यह बिल तब पेश किया गया है जब कि शीर्ष अदालत में पहले से ही इस मामले में एक याचिका पर सुनवाई जारी है। याचिका में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के अपॉइनमेंट की प्रक्रिया में परिवर्तन की मांग की गई है। हरियाणा में CM बदलने की मांग, सीएम खट्टर बोले- ऐसे फैसले Twitter पर नहीं होते आज दूसरी बार CM पद की शपथ लेंगे भूपेंद्र पटेल, कैबिनेट में इन चेहरों को मिल सकती है जगह गुजरात में भाजपा के लिए खुशखबरी जारी, 3 निर्दलीय उम्मीदवार भी देंगे समर्थन