जिम्बाब्वे में आपातकाल लागू, भूखे रहने को मजबूर एक तिहाई जनसंख्या

हरारे : जिम्बाब्वे के ग्रामीण क्षेत्रों में सूखा पड़ने से प्रेसिडेंट राॅबर्ट मुगाबे द्वारा आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। देश की एक तिहाई जनसंख्या ऐसी है जो कि अपनी भूख नहीं मिटा पा रही है। यहां की सरकार ने अन्य देशों से खाद्यान्न आयात करने के लिए पड़ोसी देश जाम्बिया से मदद ली है। उनका कहना था कि ग्रामीण क्षेत्रों में खेती को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है।

बड़े पैमाने पर मवेशियों की मौत होने के बाद स्थिति और खराब हो चुकी है। दरअसल यहां पर खेती के उपयुक्त परिस्थितियां निर्मित नहीं हो पाई जिसके कारण बड़े पैमाने पर खाद्यान्न का नुकसान हुआ। हजारों मवेशियों की मौत हो जाने के बाद स्थिति और भी खराब हो गई।

मुगाबे सरकार ने इमरजेंसी का फैसला यूरोपियन यूनियन (ईयू) के कहने पर लिया। उनके द्वारा कहा गया कि डोनर्स के माध्यम से फंड एकत्रित किया जा सकता है। मुगाबे सरकार द्वारा आपातकालीन निर्णय यूरोपियन यूनियन के कहने पर लिया गया। यूनाईटेड नेशन्स के विश्व फूड प्रोग्राम के अनुसार दक्षिणी अफ्रीकी क्षेत्र में 1.4 करोड़ लोग अपने भोजन का प्रबंध तक नहीं कर पाते हैं। ऐसे में दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया, बोत्सवाना सूखे की स्थिति में हैं।

मिली जानकारी के अनुसार विक्टोरिया फाॅल्स से बुलावायो शहर की ओर जाते हुए स्थिति एकदम सामान्य लगती है। हवांगे से 100 किलोमीटर की दूरी पर हरियाली नहीं मिली हालात ये है कि जिम्बाब्वे के कई क्षेत्र सूखे और अकाल जैसी स्थितियों से जूझ रहे हैं। लोगों के पास न तो रोजगार है और न ही भोजन का प्रबंधन करने के लिए कोई उचित व्यवस्था।

पुलों से गुजरने के बाद पानी और नदी का नामोनिशान भी नहीं मिलता है। लोग मवेशियों को अपने छत की घास निकालकर खिला रहे हैं। कृषि क्षेत्र तंबाखू व काॅटन की खेती को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। दरअसल कपास के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल सका। जिसके कारण कपास की गुणवत्ता पर असर हुआ है। 

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