नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपनी व्यवस्था में स्पष्ट कर दिया कि सर्वोच्च अदालत में प्रधान न्यायाधीश समकक्षों में प्रथम हैं और उन्हें उन्हें मुकदमों के आवंटन के लिए विशेषाधिकार प्राप्त है. इस फैसले के साथ ही अधिवक्ता अशोक पाण्डे की जनहित याचिका खारिज कर दी गई.इस याचिका में सीधे चीफ जस्टिस दीपक मिश्र की शक्तियों पर सवाल उठाया गया था. बता दें कि न्यायिक जगत के लिए आया यह यह फैसला 12 जनवरी को चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेस में मुकदमों के अनुचित आवंटन का मुद्दा उठाए जाने की पृष्ठभूमि में काफी महत्वूर्ण हो गया है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की खंडपीठ ने अधिवक्ता अशोक पाण्डे की जनहित याचिका खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी. हालाँकि इसी विषय को लेकर पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने भी याचिका दायर की थी. न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने पीठ की ओर से लिखे गए इस फैसले में शीर्ष अदालत के 2013 के नियमों का उल्लेख किया और कहा कि इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी से अधिसूचित किया गया था. उल्लेखनीय है कि बुधवार को सुनवाई के बाद आए इस फैसले को कई कानूनविदों ने इसे सही करार दिया तो कुछ वकीलों ने इसे निराशाजनक माना. उनका कहना था कि इससे एक व्यक्ति विशेष को अपनी मनमानी का मनचाहा हक मिलता है.जबकि पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश ठीक है. चीफ जस्टिस ही रोस्टर का मास्टर होता है. यह भी देखें आम्रपाली ग्रुप से सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवाल अदालत के फैसले से पिछड़ों को नुकसान- केंद्रीय मंत्री