एक पुत्री को पिता का प्यार तो प्राप्त हुआ ही नहीं, अब पिता उसकी जिम्मेदारी उठाने में भी नाटक कर रहा है। कोर्ट ने पिता की इस मानसिकता पर अफसोस व्यक्त किया है। कोर्ट ने कहा है कि तब पति-पत्नी के मध्य आपसी विवाद था तो पति ने पुत्र को ही साथ रखने के लिए क्यों सिलेक्ट किया। बेटी को मां के पास छोड़ दिया। कोर्ट ने 21 वीं सदी में बेटा-बेटी में अंतर करने की सोच को समाज की मानसिकता पर धब्बा बताया है। रोहिणी स्थित अतिरिक्त सत्र जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की कोर्ट ने इस केस में पति एवं पत्नी द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने इस केस में पति को आड़े हाथों लिया है तथा कहा है कि कोरोना एवं मंदी के इस समय में वह स्वयं दो महंगी कारें चला सकता है। किन्तु पत्नी व बेटी को गुजाराभत्ता देने में उसका व्यवसाय ठप हो गया। वह अपनी बेटी के लिए गु़जाराभत्ते के रूप में 20 हजार रुपये देने में असमर्थता दिखा रहा है तथा कोर्ट में इस राशि को कम करने के लिए सिफारिश लेकर आया है। उसका इनकम टैक्स एवं प्रॉपर्टी संबंधी ब्योरा बताता है कि वह एक जबरदस्त स्थान पर ऐशो-आराम का जीवन अपने बेटे के साथ जी रहा है। किन्तु बेटी की गुजर-बसर का खर्च देने के लिए उसका व्यवसाय ठप हो गया है तथा वह पाई-पाई को मोहताज हो गया है। किन्तु कोर्ट भी आया है तो महंगी कार से। कोर्ट ने कहा कि यह बहुत शर्मनाक है। कोर्ट ने इस शख्स को आदेश दिया है कि वह बेटी एवं पत्नी को गुजाराभत्ते के रूप में 20-20 हजार रुपये प्रतिमाह भुगतान करें। कंप्यूटर बाबा के अवैध ठिकाने पर चला बुलडोजर, दिग्विजय ने बताया बदले की भावना भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने PSLV C49 के शुभारंभ पर दी बधाई 2009 से 2019 के बीच पूर्वोत्तर में संघर्ष का शिकार हुए 3070 लोग