मनुष्य का दुनिया में यदि कोई शत्रु है, तो उसके अपने भीतर के विकार उसका अहंकार हैं। उसकीे अज्ञानता ही उसके दुख का मूल कारण है। जब तक हम अपने विकारों को नहीं पहचानेंगे तब तक उनका शमन कैसे करेंगे? हम सबको पता है कि अहंकार हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। वह प्रेम में, आत्म उन्नति में, ज्ञान के मार्ग में अपने उत्थान मे सबसे बड़ी बाधा है। फिर भी हम अहंकार को नहीं छोड़ पाते हैं। हम देखते हैं ---- किसी को सुंदरता का गुमान है, तो किसी को धन का अहंकार है, किसी को ज्ञानी होने का, तो किसी को पद का, तो किसी को बड़ा भक्त और बड़ा साधक होने का अहंकार है। हमने देखा है कि लोगों को ऊंची जात का होने का ही अहंकार हो जाता है और वे जीवन भर इस बीमारी को अपने सिर पर लादे रहते हैं । हमारे एक परिचित हैं जो अपने को वरिष्ठ समाजसेवी कहते हैं। उन्हे इसी बात का गुमान रहता है कि उन्होंने इतने लोगों की मदद की। वे अपने भीतर बैठे इस अहंकार नामक दुश्मन को अच्छी तरह से पहचानते भी है, लेकिन इसे मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। बल्कि हर दिन इसे पोषित करते रहते हैं। यदि आप और हम सजग और जागृत नहीं तो हम अपने भीतर के इस अहंकार रूपी शत्रु को कभी भी दबे पांव प्रविष्ट होने दे सकते है। यदि आप और हम चाहते हैं कि हमारा जीवन प्रेम पूर्ण और समृद्ध हो और हमारा घर स्वर्ग हो जाए तो हमें इस अहंकार रूपी दुश्मन को मारना ही होगा। यह अंहकार आपका हमारा इतना बड़ा दुश्मन है कि कभी कभी आपको हमको यह राक्षस तक बना देता है। इसलिए किसी भी मनुष्य को जीवन में कभी भी किसी भी चीज़ का अहंकार नहीं करना चाहिए नहीं तो आपके अंदर का अहंकार आपको ही ले बैठेगा और एक दिन आप किसी लायक नहीं रहेंगे। व्यक्ति को किताबी ज्ञान के अलावा समाजिक व भौतिक ज्ञान होना अति आवश्यक है वास्तु संबंधित ये छोटी-छोटी बातें बड़े काम की होती है मनुष्य के बोल ही उसे ऊपर उठाते है जब ईश्वर ने लिखा अपने भक्त को पत्र