Exclusive:स्क्रीन राइटर अमज़द खान बोले, अब आप ऑडियंस को बेवकूफ़ नहीं बना सकते !

मराठी फिल्म 'शुगर साल्ट आणि प्रेम' के स्क्रीन राइटर अमज़द खान मंगलवार को इंदौर पहुंचे। जहाँ उन्होंने न्यूज़ट्रेक लाइव डॉट कॉम से Exclusive बात करते हुए वर्तमान की सिनेमाई कहानी पर गुफ़्तगू की। इस दौरान उन्होंने बदलते दौर की सिनेमाई कहानी पर अपनी बेबाक राय रखी।

वे इन दिनों अपनी हिंदी फिल्म 'थोड़ी-थोड़ी मनमानियाँ' में व्यस्त है। उन्होंने इस फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखा हैं। साथ ही वे इस फिल्म के क्रिएटिव प्रोड्यूसर भी हैं। हाल में उन्होंने ऋतिक रोशन और सोनम कपूर के साथ ओप्पो सेल्फी और बजरंगी भाईजान फेम हर्षाली मल्होत्रा के साथ एक एड में बतौर क्रिएटिव प्रोड्यूसर काम किया हैं। इंदौर से निकल कर मुम्बई में उन्होंने बतौर राइटर अपनी पहचान बनाने के लिए​ लंबा संघर्ष किया है।     

पढ़िए, उनके साथ सिनेमाई कहानी पर गुफ़्तगू :-

सवाल- आने वाले सिनेमा की कहानी कैसी होगी ? अमज़द खान- दरअसल, आज हमारी ऑडियंस मैच्योर हो गई। वे ऑथेंटिक सिनेमा देखना पसंद करती हैं। चाहे रॉम कॉम फिल्म हो या फिर बॉयोपिक फ़िल्म हर तरह के सिनेमा में दर्शक ऑथेंटिक फिल्म देखना पसंद करती हैं। उन्हें आप बेवकूफ़ नहीं बना सकते हैं। मुझे लगता हैं कि आने वाले सिनेमाई दौर में यथार्थ फिल्म ही भारतीय सिनेमा का प्रतिनिधित्व करेगी। बतौर राइटर मेरा मानना है कि कहानी में भी रियलिस्टिक कहानी की मांग रहेगी। 

सवाल-बॉलीवुड में साउथ, कोरियन सहित अन्य फिल्मों की कॉपी लेकर क्या कहेंगे? अमज़द खान-बॉलीवुड में कॉपी और प्रेरित फिल्मों का चलन बढ़ा हैं लेकिन मूल कहानियों पर फिल्म बन रही हैं। हाल ही में रिलीज़ हुई आमिर खान की दंगल इसका उदाहरण हैं। इसके अलावा विकास बहल सहित कई डायरेक्टर हैं जो बेहतर और मूल सिनेमा बना रहे हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि ये ज़्यादा चिंता का विषय नहीं हैं। 

सवाल - वुमन सब्जेक्ट पर बन रही फिल्मों के बारे में क्या कहना चाहेंगे ? अमज़द खान- ऐसा नहीं है कि पहले महिला प्रधान सिनेमा नहीं रचा गया। लेकिन पहले महिला प्रधान फिल्मों में भी पुरुष डोमिनेट होता था। आज पिंक जैसी फिल्म महिलाओं को अपने अधिकार के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसके अलावा भी नीरजा, क्वीन सहित कई फिल्म महिला प्रधान रही हैं। यह हमारे सिनेमा का सकारात्मक प्रयास हैं। 

सवाल-नए राइटर के लिए कोई मैसेज देना चाहेंगे ? अमज़द खान- खूब देखों, खूब लिखों। ऑब्जर्व ही राइटिंग के लिए अहम हैं। साथ ही पढ़ना भी उतना ही ज़रूरी हैं।  

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