नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आगामी एशियाई खेलों के लिए इंडिया का प्रतिनिधित्व करने के मद्देनजर घुड़सवारों की चयन प्रक्रिया पर नाराजगी व्यक्त करते हुए बोला है कि खिलाड़ियों को अदालत के गलियारे में नहीं बल्कि स्टेडियमों में होना चाहिए और जिनका उद्देश्य देश को गौरवान्वित करना जरुरी है, उन्हें खेल महासंघों द्वारा मानसिक पीड़ा का शिकार बनने से रोकना पड़ेगा। न्यायमूर्ति गौरांग कांत ने तीन घुड़सवारों की याचिका पर सुनवाई करते हुए बोला है कि वह भारतीय घुड़सवारी महासंघ (ईएफआई) के प्रतिनिधियों में पेशेवर रवैये की दयनीय स्थिति से बहुत दुखी थे और मौजूदा मामला ऐसा लगता है कि इसमें एक संस्था अपनी पूरी ताकत कुछ व्यक्तिगत खिलाड़ियों को टूर्नामेंट से बाहर करने के लिये उपयोग भी करने में लगी हुई है। चिराग खंडाल, शशांक सिंह कटारिया और यश नेनसी की याचिका महासंघ द्वारा 19वें एशियाई खेलों के लिए चयन मानंदड में शुरू किये गये कुछ बदलावों से जुड़ा हुआ है। इन एशियाई खेलों का आयोजन इस वर्ष सितंबर-अक्टूबर में चीन के हांगजोऊ में किया जाने वाला है। अदालत ने 7 मार्च को जारी किए गए अपने आदेश में बोला है कि, ‘कोई भी (खिलाड़ी) जो अपने देश का गौरवान्वित करने का लक्ष्य रखता है, उसे महासंघ और इसके अधिकारियों द्वारा मानसिक पीड़ा का शिकार नहीं बनाना चाहिए। बीते 18वें एशियाई खेलों में इंडिया की पदक तालिका में निचले स्थान की स्थिति को देखते हुए हमारी कोशिश अपने खिलाड़ियों को सहयोग भरा वातावरण मुहैया कराने के होने चाहिए ताकि उनका ध्यान सिर्फ अपने प्रदर्शन में सुधार करने और टूर्नामेंट में शीर्ष स्थान प्राप्त करने में लगे हुए है।' अंकिता रैना और ब्रेंडा फ्रूहविरतोवा ने आईटीएफ महिला ओपन के क्वार्टरफाइनल में बनाया स्थान आखिर कैसे एक बास्केटबॉल खिलाड़ी बन गया कुश्ती चैंपियन जर्मन ओपन में लक्ष्य सेन कर सकते है भारत की अगुवाई