नई दिल्ली: पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के पीएम नरेंद्र मोदी के ऐलान से सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लगता है कि इससे उसकी चुनावी संभावनाएं सशक्त होंगी और उसके प्रचार अभियान को एक नयी ताकत मिलेगी. दरअसल, गत वर्ष सितंबर महीने में केंद्र की मोदी सरकार ने विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 लेकर पारित कर दिया था. इसके बाद से ही देश के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन कानूनों के विरोध में प्रदर्शन शुरू हो गया था और इन राज्यों के किसान दिल्ली की अलग-अलग सरहदों पर आकर डट गए. इन तीनों राज्यों में किसानों की नाराजगी और लगभग एक साल से चल रहा आंदोलन, भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत बन गए थे. अगले साल की शुरुआत में जिन पांच राज्यों में विधानसभा होने वाले हैं, उनमें भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश बेहद महत्वपूर्ण है. पिछले चुनाव में भगवा दल ने राज्य की 403 में से 312 सीटों पर जीत दर्ज की थी और प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. राज्य में फिर से सत्ता में लौटने की भाजपा की कोशिशों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, कृषि कानूनों के प्रभाव के कारण बाधक बनता नज़र आ रहा था. जाटों में भाजपा के खिलाफ बढ़ती नाराजगी को देखते हुए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल ने गठबंधन कर लिया था. ऐसे में भाजपा के लिए इस क्षेत्र में स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण बनती नज़र आ रही थी. अब तीनों कानूनों को रद्द करने से भाजपा नेताओं में अब उम्मीद जगी है कि वह इस फैसले से जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वह अपना जनाधार वापस पाने मे कामयाब होगी. आज पूरे देश में 'विजय जुलुस' निकालेगी कांग्रेस, जानिए किस जीत की ख़ुशी मनाएगी पार्टी जाति आधारित जनगणना कराने पर फैसला लेने के लिए जल्द होगा सर्वदलीय बैठक का आयोजन: सीएम नीतीश आज फिर पाकिस्तान जाएंगे कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू