विदर्भ: 1990 में महाराष्ट्र के विदर्भ से शुरू हुआ किसानों की आत्महत्या करने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में सूखे और कर्ज के कारण 12602 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी, वहीं 30 दिसंबर को जारी की गई ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015’ नामक रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 के मुकाबले 2015 में किसानों और कृषि मजदूरों की कुल आत्महत्या में दो फीसदी की वृद्धि हुई.साल 2014 में कुल 12360 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की. गौरतलब है कि वर्ष 2014 और 2015 दोनों ही वर्षों में देश के बड़ा हिस्सा सूखे से प्रभावित रहा.इसीलिए देश के कई बड़े राज्यों को सूखा पीड़ित घोषित किया गया. इन मौतों में करीब 87.5 फीसदी केवल देश के सात राज्यों में हुई हैं. आत्महत्या के मामले में सबसे ज्यादा खराब स्थिति महाराष्ट्र की रही. राज्य में वर्ष 2015 में 4291 किसानों ने आत्महत्या कर ली. महाराष्ट्र के बाद किसानों की आत्महत्या के सर्वाधिक मामले कर्नाटक (1569), तेलंगाना (1400), मध्य प्रदेश (1290), छत्तीसगढ़ (954), आंध्र प्रदेश (916) और तमिलनाडु (606) में पाए गए. यह खबर चिंताजनक है कि वर्ष 2015 में कृषि सेक्टर से जुड़ी 12602 आत्महत्याओं में 8007 किसान थे और 4595 कृषि मजदूर.इसी तरह वर्ष 2014 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 5650 और कृषि मजदूरों की 6710 थी.किसानों की आत्महत्या के मामले में एक वर्ष में 42 फीसदी की वृद्धि हुई. वहीं कृषि मजदूरों की आत्महत्या की दर में 31.5 फीसदी की कमी आई है. यहां स्पष्ट कर दें कि रिपोर्ट में उन सभी को किसान माना गया है जिनके पास अपना खेत हो या लीज पर खेत लेकर खेती करते हैं,वहीं रिपोर्ट में उन लोगों को कृषि मजदूर माना गया है जिनकी जीविका का आधार दूसरे के खेतों पर मजदूर के रूप में काम करना है. किसानों, कृषि मजदूरों की आत्महत्या के पीछे कंगाली, कर्ज और खेती से जुड़ी दिक्कतें प्रमुख हैं. किसान बेटे की मौत पर नहीं मरता तो फसल. किसानों की आत्महत्या के लिए भाजपा...