हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में सौंपे हलफनामे में केंद्रीय कानून मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि देश मे ऐसी अदालतें साल भर में गठित कर ली जाएंगी जो दागी नेताओ पर जल्दी फैसला सुना सकेगीl सरकार ने इसका प्रारूप बना लिया है। इन 12 अदालतों के गठन पर सरकार 7.8 करोड़ रुपये खर्च करेगी। उल्लेखनीय है कि देशभर में सैकड़ों राजनेता हैं जिन पर कई मुकदमे लंबित हैं। न्याय में होने वाली देरी की वजह से ऐसे नेता कई बार चुनकर संसद या विधान सभाओं में पहुंच जाते हैं, जबकि नियमानुसार एक बार दोषी और सजायाफ्ता हो जाने पर किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता जनप्रतिनिधि कानून के तहत स्वत: ही समाप्त हो जाती है, मगर कानूनी उलझनों का फायदा उठाकर अपराधी किस्म के नेता अपनी सदस्यता बचाए रहते हैं। पिछले महीने नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने सजा पा रहे नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की वकालत की थी। चुनाव आयोग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पेशल कोर्ट बनाने की संभावनाओं पर केंद्रीय कानून मंत्रालय से छह हफ्तों में हलफनामा देने को कहा था। मामले में तो पहले केंद्र सरकार ने कहा कि हम स्पेशल कोर्ट के लिए तैयार हैं लेकिन यह राज्यों का मामला है। तब कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील को झिड़कते हुए कहा था कि आप सेंट्रल फंड से स्पेशल कोर्ट बनाने की व्यवस्था करें। कोर्ट ने अगली सुनवाई पर कोर्ट की संख्या और उसके लिए फंड के बारे में जानकारी मांगी थी। इस विधेयक को लागू कर मप्र बना देश का पहला राज्य इन दरिंदों को नहीं किसी कानून का डर नाक दबाने से मुंह खुल जाएगा - अन्ना हजारे