पहले कहा- मंदिरों पर मत जाओ, अब मंदिर प्रबंधन पर नियंत्रण की कोशिश..! आखिर CPIM ने क्यों बदली रणनीति ?

कोच्ची: लोकसभा चुनाव के दौरान केरल में खराब प्रदर्शन के बाद, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPIM) अब मंदिर समितियों में घुसपैठ करने और राज्य में मंदिर प्रबंधन पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश कर रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में तिरुवनंतपुरम में आयोजित तीन दिवसीय नेतृत्व शिखर सम्मेलन के दौरान CPIM ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा था कि वे मंदिरों में जाएं, धार्मिक अनुष्ठान करें और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि मंदिर प्रबंधन पर अपना नियंत्रण जमाएं।

बताया जा रहा है कि, पार्टी हताश होकर कुछ प्रस्तावों को पलटने की कोशिश कर रही है, जो उसने 2013 के कुख्यात पलक्कड़ अधिवेशन के दौरान पारित किए थे। दरअसल, उस समय, वामपंथी दल ने अपने साथियों को मंदिरों में जाने, धार्मिक अनुष्ठान करने और मंदिर समितियों का हिस्सा बनने से प्रतिबंधित कर दिया था। यहां तक ​​कि पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को गृह प्रवेश समारोह के दौरान 'गणपति हवन' जैसे अनुष्ठान करने से भी रोक दिया था। वामपंथी दल का ये अचानक हृदय परिवर्तन केरल में बहुसंख्यक हिंदू समुदाय तक पहुंचने और राज्य में मंदिर प्रशासन पर नियंत्रण हासिल करने की उनकी रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 21 जून को बताया गया था कि CPIM आस्था और विश्वास के मामलों पर अधिक उदार रुख अपनाएगी। 2024 के लोकसभा चुनाव की हार का CPIM के प्रमुख नीतिगत बदलाव पर उत्प्रेरक प्रभाव पड़ेगा। अपने चुनावी प्रदर्शन की समीक्षा के बाद वामपंथी दल ने निष्कर्ष निकाला कि हिंदू वोट मालाबार के अपने गढ़ में भी भाजपा की ओर झुके। पार्टी ने अब संघ परिवार और उसके अनुयायियों से मंदिरों पर नियंत्रण हासिल करके 'सांप्रदायिकतावादियों' को किनारे करने का दावा किया है।

CPIM की राज्य समिति का मानना ​​है कि "आस्था, मंदिर अनुष्ठानों और श्रद्धालुओं के मामलों पर संघ  का प्रभाव समाज में दक्षिणपंथी झुकाव का मुख्य कारण है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसने भक्तों के बीच काम करने का फैसला किया है, जिसका उद्देश्य "सच्चे श्रद्धालुओं से सांप्रदायिकतावादियों को दूर करना" है। 

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