नई दिल्ली : मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमणियन द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी कारकों में स्पष्ट सुधार के बावजूद भारत की रेटिंग का उन्नयन नहीं किए जाने पर वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना कर सुब्रमणियन ने कहा था कि रेटिंग एजेंसियां भारत और चीन के मामले अलग मानदंड अपना रही हैं. इस आलोचना के बाद वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने एक बयान जारी कर कहा कि भारत सरकार ने बैंक एनपीए से लड़ने के लिए जो प्रयास किए हैं उसका असर अगले कुछ वर्षों के बाद देखने को मिलेगा. फिलहाल, एनपीए कम करने के लिए किए जा रहे उपायों के असर से बैंकों के लाभ पर दबाव देखने को मिलेगा.फिच के अनुसार कमजोर बैंकों को आने वाले दिनों में पूँजी की समस्या का सामना करना पड़ सकता. हालाँकि फिच ने माना कि एनपीए के लिए किए जा रहे प्रावधानों से भारत में बैंकिंग व्यवस्था आने वाले कुछ वर्षों में मजबूत होगी. बता दें कि फिच ने कहा कि नोटबंदी की प्रक्रिया से भारत के बैंकों में कम लागत पर हुई जमा राशि में वृद्धि हुई है. इससे अब इस जमा राशि का अधिकांश हिस्सा अब बैंकों के पास जमा रहेगा. यह बैंकों के लिए अच्छी बात है लेकिन इससे बैंकों को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि एनपीए की स्थिति से निपटने में उनकी कमाई और ग्रोथ को लगने वाले झटके से निपटने के लिए यह राशि ज्यादा लाभप्रद नहीं होगी. यह भी देखें भारत का आर्थिक परिदृश्य स्थिर, फिच ने भारत की रेटिंग अपरिवर्तित रखी GST पर जेटली और दिग्विजय में हुआ पत्राचार