नई दिल्ली: पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते तनाव और संघर्ष से भरे रहे हैं, पाकिस्तान को अक्सर भारत की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा माना जाता है, जो वो रहा भी है। युद्धों से लेकर आतंकवादी हमलों तक, पाकिस्तान ने बार-बार भारत को चुनौती दी है। इसके बावजूद, भारत में कुछ व्यक्तियों और राजनीतिक दलों, विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी का पाकिस्तान के प्रति कई बार उजागर हुआ है। कुछ समय पहले जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और कग्रिल युद्ध के गुनहगार परवेज मुशर्रफ की मृत्यु पर भी ये देखने को मिला था। कारगिल युद्ध के खलनायक मुशर्रफ की मौत पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने उन्हें शांतिदूत कहा था। ऊँची पहाड़ियों पर लड़े गए इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिकों की शहादत हुई और 1300 से अधिक घायल हुए। पाकिस्तान को भी लगभग 1000 से 1200 सैनिकों का नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन, भारत के खिलाफ लगातार जहर उगलने वाला मुशर्रफ, शशि थरूर के लिए शांतिदूत रहा। दरअसल, इसकी जड़ें बेहद गहरी हैं। कांग्रेस पार्टी ने ऐतिहासिक रूप से कारगिल युद्ध को राष्ट्रीय जीत के रूप में नहीं बल्कि भाजपा की जीत के रूप में देखा है। शुरू से ही कारगिल युद्ध पर कांग्रेस का रुख विवादास्पद रहा है। जब लड़ाई चल ही रही थी, उस दौरान, तत्कालीन विपक्षी नेता सोनिया गांधी ने राज्यसभा के विशेष सत्र की मांग की, जिसमें राष्ट्रीय एकता पर राजनीतिक पैंतरेबाजी को प्राथमिकता दी गई। कारगिल विजय दिवस मनाने में कांग्रेस की अनिच्छा, जो जीत और लड़ने वाले सैनिकों के सम्मान के लिए समर्पित दिन है, इस रवैये को और भी दर्शाता है। यहाँ तक कि युद्ध के समय जब अटल सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, उसमे भी सोनिया गांधी अनुपस्थित रहीं थीं, जो ये दिखता है कि राष्ट्रीय संकट के वक़्त उन्हें देश की कितनी चिंता थी। जंग जीतने के बाद उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 जुलाई को विजय दिवस घोषित करते हुए इसे हर साल धूमधाम से मनाए जाने का ऐलान किया था। इसके बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई तो जनता के दिल से कारगिल विजय का इतिहास मिटाने के लिए विजय दिवस मनाने की परंपरा ही बंद कर दी। यही नहीं कांग्रेस सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान भी पार्टी कारगिल विजय दिवस नहीं मनाने की इजाजत नहीं देती, अगर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठती। क्योंकि सदन के ज्यादातर सदस्य कारगिल विजय दिवस के महत्व को जानते थे। बाद में कांग्रेस सरकार को अपने दूसरे कार्यकाल में कारगिल विजय दिवस मनाने को मजबूर होना पड़ा था। दरअसल, कांग्रेस नेता शुरू से बड़े ही शर्मनाक तरीके से कारगिल युद्ध में भारत की जीत को NDA सरकार की जीत बताते रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन सांसद राशिद अल्वी ने वर्ष 2009 में कहा था कि कांग्रेस को कारगिल विजय दिवस मनाने की कोई वजह नहीं नज़र आती। कारगिल की जीत को युद्ध में मिली विजय के तौर पर नहीं देखा जा सकता। यह अलग बात है कि NDA इसका जश्न मना सकता है, क्योंकि यह युद्ध उस वक़्त हुआ था जब उसकी सरकार थी।’ अब ये भी सोचने वाली बात है कि, युद्ध दो सरकारों के बीच हुआ था, या दो देशों के बीच, तो जीत देश की होगी या सरकार की। फिर भी कांग्रेस कारगिल युद्ध की जीत को भाजपा और NDA की जीत बताकर इसकी महिमा कम करती रही। यही नहीं बीच, युद्ध के दौरान, कांग्रेस से जुड़े एक रक्षा विशेषज्ञ ने कथित तौर पर भारतीय सेना में गोला-बारूद की कमी के बारे में गलत सूचना फैलाई थी, जिसका बाद में सेना ने खंडन किया था। कांग्रेस की राजनीतिक बयानबाजी अन्य सैन्य मामलों तक भी फैल गई है। सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने से लेकर सैन्य नेताओं की आलोचना करने तक, पार्टी अक्सर खुद को राष्ट्रीय भावना के साथ असंगत पाती है। 2017 में, वरिष्ठ कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की तुलना एक गली के गुंडे से करते हुए एक विवादास्पद बयान दिया, जिसके लिए उन्होंने बाद में माफ़ी मांगी। हाल ही में, चीन के साथ बढ़ते तनाव के दौरान, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत सरकार पर चीनी खतरे को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया था, इसके बाद उन्होंने अपने विदेश दौरे पर बयान दिया कि चीन सौहार्दपूर्ण देश है। राजस्थान और बिहार को भाजपा ने दिए नए प्रदेश अध्यक्ष, जानिए किसे मिली कमान ? '.. तो इसे पूरे राज्य में लागू करो', नाम विवाद पर यूपी सरकार से ऐसा क्यों बोली सुप्रीम कोर्ट ? 'यूपी को कुछ नहीं दिया..', कांग्रेस-सपा के बाद अब मायावती ने लगाए आरोप, जानिए बजट में राज्यों के लिए क्या है घोषणा ?