हमारे देश में कोई चीज मुफ्त मिल रही हो, तो उसे लेने के लिए भारी भीड़ लग जाती है। लोग न आगा देखते हैं और न पीछा, बस चीज फ्री में मिलनी चाहिए। इस मुफ्त की चीज का आलम यह है कि जितने का सामान नहीं, उतना किराया लगाकर लोग सामान लेने की जगह पहुंच जाते हैं। कटाक्ष: बाबा नाम से परहेज... अब यहां ही देख लो त्योहारी सीजन आया, तो शुरू हो गई मुफ्त की सेल। फ्लिपकार्ड, अमेजन, पेटीएम मॉल जैसी शॉपिंग ऐप और वेबसाइट सस्ते दामों पर सामान दे रही हैं उस पर भी कैशबैक मिल रहा है। यानी हो गया सोने पर सुहागा। दाम भी कम और कम में भी दाम मुफ्त। तो फिर लग गई लूट। मुफ्त के दाम लेने। अब कैशबैक चाहिए, तो सामान लो। सामान की कीमत भी फिक्स है, इतने का सामान लेंगे, तभी दाम मिलेगा वापस। अब मुफ्त का कैशबैक चाहिए, तो सामान लिया। जरूरत है 200 की, लेकिन कैशबैक तो 5000 रुपये पर है जी, तो कैसे छोड़ें मुफ्त के दाम, सो लिया 5000 का सामान। अब यही सब चल रहा है हर जगह। कटाक्ष: जाति है कि जाती नहीं कम दाम ही नहीं एक के साथ एक फ्री भी आजकल बहुत चल रहा है। एक प्रेशर कुकर लो, उसके साथ कड़ाही फ्री। अब प्रेशर कुकर भी 2500 रुपये वाला। अब 1000 रुपये का कुकर 2500 रुपये में लिया, भई मुफ्त कड़ाही का मोह छोड़ा ही नहीं जाता। यह फ्री कुछ ऐसा ही है, इसका माया जाल बड़ा भयंकर है। छूटे नहीं छूटता। असल फायदा लेकिन मुफ्त देने वाली कंपनियों का हो रहा है। 100 की चीज 1000 में बिक रही है। यानी मुफ्त की चीज में ज्यादा कमाई कर रही हैं और जनता को लगता है कि मुफ्त में कड़ाही देकर वह उसका भला कर रही हैं। सो जी अपन तो मुफ्त से किए राम—राम, आपकी आप जानो.... तीखे बोल सियासत में सब जायज है... ऐसे न रूठा करो... कटाक्ष: सफाई में भी सफाई