मंत्री-प्रधानमंत्री सबकी जांच कर लेंगे हम, लेकिन CJI-जजों की नहीं..! क्या लोकपाल का ये फैसला सही?

नई दिल्ली: लोकपाल ने स्पष्ट किया है कि देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और सुप्रीम कोर्ट के अन्य जज उसके जांच के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। यह फैसला पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ के खिलाफ दर्ज शिकायत पर सुनवाई के दौरान सुनाया गया। यह शिकायत अक्टूबर 2024 में दर्ज हुई थी, जब डीवाई चंद्रचूड़ मुख्य न्यायाधीश थे। नवंबर 2024 में उनके रिटायर होने के बाद इस पर निर्णय लिया गया।  

लोकपाल ने अपने फैसले में लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 14 का हवाला दिया। इस धारा में उन व्यक्तियों की सूची दी गई है, जिन पर लोकपाल जांच कर सकता है। इसमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, ग्रुप A, B, C, D के कर्मचारी, और सोसायटी, ट्रस्ट या बोर्ड से जुड़े व्यक्ति शामिल हैं। लोकपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट या उसके जज इस सूची में शामिल नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ‘बॉडी’ की परिभाषा में नहीं आता क्योंकि यह संसद के किसी अधिनियम के तहत नहीं बना है और न ही यह केंद्र सरकार के वित्तीय नियंत्रण में है। इसलिए, CJI और अन्य जज लोकपाल की जांच के दायरे से बाहर हैं।  

यह फैसला न्यायपालिका और लोकपाल के अधिकार क्षेत्र के बीच की सीमाओं को स्पष्ट करता है, लेकिन कई सवाल खड़े करता है। न्यायपालिका को निष्पक्ष और अपराधमुक्त बनाए रखना लोकतंत्र की मूलभूत शर्त है। हालांकि, लोकपाल के दायरे से न्यायपालिका को बाहर रखना इस सवाल को जन्म देता है कि जजों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए जांच कौन करेगा?  पिछले कुछ वर्षों में, कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें न्यायपालिका पर बाहरी दबाव या भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। उदाहरण के तौर पर, अतीक अहमद का मामला लिया जा सकता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के 10 जजों ने उसके मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इसके बाद 11वें जज ने अतीक अहमद को जमानत दे दी थी। सवाल यह है कि पहले 10 जजों ने पीछे हटने का फैसला क्यों किया? क्या उन्हें धमकाया गया था या खरीदने की कोशिश हुई?  

कई बार देखा गया है कि बाहुबली और रसूखदार लोग अदालत की कार्रवाई को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। जजों पर दबाव बनाया जाता है, उन्हें धमकाया जाता है, या अन्य तरीकों से उन्हें प्रभावित किया जाता है। ऐसी स्थितियों में, अगर जजों की जांच ही नहीं हो सकती, तो न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजमी है।  

यह सवाल महत्वपूर्ण है कि अगर लोकपाल प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और सांसदों की जांच कर सकता है, तो जजों को इससे बाहर क्यों रखा गया है? न्यायपालिका की स्वायत्तता बनाए रखना जरूरी है, लेकिन इसकी आड़ में अगर जांच से बचने की सुविधा मिलती है, तो यह जनता के न्याय के अधिकार पर चोट है। न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच तंत्र जरूरी है। यह तंत्र न्यायपालिका के स्वायत्तता के साथ संतुलन बनाए रखकर काम करे। लोकपाल का वर्तमान दायरा इस आवश्यकता को पूरा नहीं करता। अगर न्यायपालिका को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाता है, तो यह लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था के प्रति जनता के विश्वास को मजबूत कर सकता है। 

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