महात्मा गांधी ने देश की आजादी में अहम किरदार निभाया था। उनके आंदोलनों ने ही अंग्रेजों को ये एहसास दिला दिया था कि देश उनके लिए रहने का स्थान नहीं बचा है। महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों को अपार पराजय प्राप्त हुई थी। ऐसा भी कहा जा सकता है कि महात्मा गांधी ने कभी अपराजय हासिल नहीं की। परन्तु आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी कहानी के बारे में, जिसे महात्मा गांधी के जीवन की सबसे बड़ी पराजय माना जाता है। 23 सितंबर 1944 बात उस वक़्त की है जब महात्मा गांधी अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। इस दौरान महात्मा गांधी ने मुहम्मद अली जिन्ना को दो लेटर लिखे। पहले लेटर में उन्होंने लिखा था कि कल शाम की हमारी चर्चा कुछ अधिक अच्छी नहीं रही। हम कभी एक पन्ने पर नहीं मिलते। हमारी सोच तथा हमारे विचार एक दूसरे के समानांतर में चलते दिखाई देते हैं। उन्होंने आगे लिखा कि हम एक-दूसरे से बिछड़ना नहीं चाहते, इसलिए हमने दोबारा चर्चा करने की कवायद आरम्भ की। मैं चाहता हूं कि आप मुझे बताएं कि आप किन बातों पर मेरा हस्ताक्षर लेना चाहते हैं। इसकी जानकारी आप मुझे पत्र के जरिये दें। वही जिन्ना ने इस पत्र का जवाब बड़ी बेरुखी से दिया। जिन्ना ने लिखा कि आपके पास ऐसी हैसियत नहीं है कि आप किसी का प्रतिनिधित्व करें। हस्ताक्षर की बात तो तब आएगी जब आपके पास प्रतिनिधि बनने की हैसियत होगी। उन्होंने लिखा कि मेरा निर्णय नहीं बदल सकता। हम मार्च 1940 वाले लाहौर-प्रस्ताव के सिद्धांतों पर कायम रहेंगे। बता दें कि यह प्रस्ताव द्विराष्ट्र सिद्धांत और भारत के विभाजन को लेकर किया गया था। और ये गांधीजी की सबसे बड़ी विफलता थी। हाथरस में दलित लड़की से सामूहिक दुष्कर्म, मायावती बोलीं- राज्य में सुरक्षित नहीं हैं बहन-बेटियां यूपी में 'फिल्म सिटी' को लेकर कवायद तेज़, नोएडा में अवनीश अवस्थी ने किया जमीन का निरिक्षण पानी की टंकी में डालकर कलियुगी पिता ने की 6 वर्षीय मासूम की हत्या, परिवार में पसरा मातम