दुनिया का ताकतवार देश चीन भले ही यह कहे कि उसकी नीतियां विस्तारवादी नहीं हैं लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है. चीन के कारोबारी जर्मनी की कई कंपनियों के अधिग्रहण की फिराक में हैं. इसे लेकर जर्मनी को अपने देश की बड़ी कंपनियां चीनी हाथों में जाने से बचाने के लिए नए कानून तक बनाने पड़ गए हैं. World AIDS DAY: दिल्ली में नशा करने वाले हो रहे एचआईवी का शिकार, अब तक 6000 से ज्यादा मरीज़ मिले जर्मन वित्तमंत्री पीटर आल्टमायर ने समय रहते सरकारी दखल की नई व्यवस्था के तहत स्थायी समिति बनाने की घोषणा की है जो सरकारी बैंकों के साथ मिलकर काम करेगी. यह समिति जरूरत पड़ने पर जर्मन कंपनियों को अधिग्रहण से बचाने के लिए त्वरित कार्रवाई करेगी. रणनीति के अंतिम स्वरूप को लांच करते हुए मंत्री ने बताया कि इसका लक्ष्य जर्मनी के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को नुकसान से बचाना भी है.अपने बयान में वित्तमंत्री ने बताया कि यह व्यवस्था की गई है ताकि जरूरी फैसले जल्द से जल्द और प्रभावी तरीके से लिए जा सकें. अभी यह नहीं बताया गया है कि कौन सी कंपनियों को बचाने के लिए सरकारी समिति कदम उठाएगी. आने वाले समय में धरती को आग के गोले में तब्दील कर सकती है ग्लोबल वॉर्मिंग, मानवता पर बड़ा खतरा चीन से बचने के लिए नई स्थायी समिति तब हरकत में आएगी जब सुरक्षा संबंधी तकनीक बनाने वाली किसी जर्मन कंपनी को अधिग्रहण से बचाने का अन्य विकल्प ना बचा हो. ऐसे में सरकार द्वारा कंपनी में अस्थायी हिस्सेदारी खरीदी जाएगी और यह काम सरकारी विकास बैंक, केएफडब्ल्यू करेगा. स्थायी समिति विकास बैंक के साथ काम जरूर करेगी लेकिन इसकी मदद से सरकार कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं करेगी.यूरोपीय संघ (ईयू) भी चीन के साथ अपने औद्योगिक नीति पर पुनर्विचार कर रहा है और इसी सोच के तहत जर्मन कंपनियों में चीनी निवेश को लेकर सावधानी बरतने की कोशिश हो रही है. 2016 में चीन की मीडिया नाम की कंपनी ने बवेरिया की औद्योगिक रोबोट बनाने वाली कंपनी कूका का अधिग्रहण किया था.इसके बाद से जर्मन राजनेता ऐसे सौदों को लेकर काफी सजग हो गए है. हाफिज सईद के खिलाफ आतंकी फंडिंग के आरोप की सुनवाई 7 दिसंबर से हांगकांग के छात्र आंदोलन को मिला बुजुर्गों का साथ, अधिकार मिलने तक खत्म नहीं करेंगे आंदोलन ISIS ने ली लंदन ब्रिज हमले की जिम्मेदारी, पाकिस्तान का है आतंकी हमलावर