'स्कूलों में गीता न पढ़ाई जाए..', जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हाई कोर्ट में लगाई याचिका

अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने सूबे के स्कूलों में भगवत गीता पढ़ाने के फैसले को लेकर सरकार से जवाब तलब किया है। दरअसल, गुजरात सरकार ने हाल ही में स्कूलों में 6वीं से 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में श्रीमद्भागवत गीता सार को शामिल करने की घोषणा की थी। नई शिक्षा नीति के तहत हुए इस फैसले के अनुसार, प्रदेश के सभी स्कूलों में 6वीं से 12वीं कक्षा तक के बच्चों को भगवत गीता के सिद्धांत और मूल्यों की शिक्षा दी जाएगी। 

किन्तु, गुजरात सरकार के इस फैसले के विरुद्ध जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ से गुजरात उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के प्रस्ताव को चुनौती देते हुए दावा किया है कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लंघन है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने फिलहाल इस प्रस्ताव पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने सरकार से 18 अगस्त तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। यही नहीं उच्च न्यायालय ने इस मामले में केंद्र को भी पक्षकार बनाया है। बता दें कि इस साल मार्च में गुजरात सराकर के शिक्षा मंत्री ने पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने की घोषणा की थी। 

जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ से पेश वकील मिहिर जोशी ने कहा है कि, भारतीय संस्कृति के मूल्यों और सिद्धांतों और ज्ञान की प्रणाली को निश्चित रूप से स्कूली पाठ्यक्रम में निर्धारित किया जा सकता है, किन्तु सवाल ये है कि क्या ये केवल एक धर्म की पवित्र किताब के मूल्यों और सिद्धांतों को प्राथमिकता देकर किया जाना चाहिए। भारतीय संस्कृति में जो कुछ भी शामिल है उसकी एक विस्तृत श्रृंखला है। मगर क्या केवल एक धर्म की धार्मिक पुस्तक में निर्धारित मूल्यों और सिद्धांतों को प्रधानता देना उचित है। 

बता दें कि इससे पहले सरकार की तरफ से गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा करते हुए कहा गया था कि स्कूल के बच्चे गीता के ज्ञान और उसके मूल्यों को जान सकें, इसके लिए गीता पर वक्तृत्व स्पर्धा, श्र्लोक गान और साहित्य का आयोजन भी किया जाएगा। गुजरात सरकार ने स्कूलों में भगवत गीता को पढ़ाने का ऐलान ऐसे समय में किया है, जब राज्य में कुछ महीनों में ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।  

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