पृथ्वी दिवस: झुलस रही पृथ्वी, बढ़ रहा खतरा

आज 22 अप्रैल का दिन पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन को मानाने का मुख्य उद्देश्य तो मनुष्य को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक करने का है, लेकिन 1970 से इस दिवस को हर वर्ष मनाने के बाद भी, हम दिन प्रति दिन प्रकृति और पर्यावरण की अनदेखी कर उसे दूषित कर रहे हैं. और यही वजह है की आज हम प्रकृतिजन्य कई समस्याओं से जूझने को मजबूर है. 

फ़िलहाल जो सबसे बड़ी समस्या मनुष्य ने अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए खड़ी कर दी है वो है ग्लोबल वार्मिंग, यानि भूमंडलीय ऊष्मीकरण, जिसकी वजह से उत्तर और दक्षिणी ध्रुव पर जमी बर्फ तेज़ी से पिघल रही है और वैंज्ञानिक भी कई बार इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर उठा चुके हैं कि अगर इस समस्या पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो यह बर्फ पिघल कर पूरी धरती को अपनी चपेट में ले लेगी और जन जीवन पूरी तरह समाप्त हो जाएगा.

आदमी के द्वारा पैदा किये गये प्रदुषण (ग्रीन हाउस गैसों) से पर्थ्वी के बढते हुए औसत तापमान को ग्लोबल वार्मिंग कहते है जिसकी वजह से अंटार्टिका में बर्फ़ पिघल रही है और भारत में हिमालय पर बर्फ़ पिघल रही है और समुंद्र का जलस्तर बढता जा रहा है, जिसके कारण मौसम में भी अनचाहा परिवर्तन देखने को मिलता है , जैसे कहीं तो अथाह बारिश जो सब कुछ तहस-नहस कर देती है और कहीं पानी की बूँद-बूँद को तरसते लोग. यह सब हमारा ही किया हुआ है, अगर हम अब भी न जागे तो भविष्य में हमे प्रकृति के कोप से बचाने वाला कोई भी न होगा.

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