आप सभी को बता दें कि इस बार गोपाष्टमी 4 नवंबर को है. ऐसे में ऐसी मान्यता है कि, ''कृष्ण जी ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तक गौ-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था और आठवें दिन इंद्र अहंकार छोड़ कर भगवान की शरण में आए. उसी दिन से गोपाष्टमी पर्व मनाया जाने लगा.'' जी हाँ, जी दरअसल इस दिन शाम के समय गायों के जंगल- खेत से वापस आने पर उनका अभिवादन- पूजन करते हैं और कहा जाता हैं कि, ''इससे सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है और भविष्य पुराण,स्कंद और ब्रह्मांड पुराण तथा महाभारत में भी गाय के अंग-प्रत्यंगों में देवी-देवताओं की स्थिति का जिक्र किया गया है.'' इसी के साथ गाय भारतीय संस्कृति का प्राण मानी जाती हैं और यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविंद की तरह पूज्य है. इसी के साथ भारत में जन्मे और फले-फूले शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि धर्म-संप्रदायों में उपासना, कर्मकांड और मान्यताओं में अंतर होते हुए भी गाय के प्रति आदर भाव है और समवेत भाव व्यक्त करते हुए कहा गया है, "सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:." इसका मतलब है कि गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास है. इसी के साथ गाय को केवल एक जानवर ना मानकर उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है. इसी के साथ पद्म पुराण के मुताबिक़ गाय के मुख में चारों वेद, सींगों में भगवान शंकर और विष्णु रहते हैं. कहते हैं गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के अग्र भाग में इंद्र, दोनों कानों में अश्विनी कुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती, अपान में सारे तीर्थ, रोमकूपों में ऋषि, पृष्ठभाग में यम, दक्षिणी पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम में यक्ष गण, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प और खुरों में अप्सराएं हैं. यहाँ जानिए नवंबर महीने के सभी व्रत और त्योहार अपने ससुराल में राज करती हैं इस राशि की लड़कियां, मिलता है खूब प्यार 1 नवंबर को है लाभ पंचमी, जानिए महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि