गांधीनगर: गुजरात उच्च न्यायालय ने गुरुवार को राज्य सरकार से सवाल पुछा है कि एक सामान्य नागरिक को नास्तिक होने का दर्जा क्यों नहीं दिया जा सकता। दरअसल, 35 वर्ष के एक ऑटो ड्राइवर काफी समय से इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। राजवीर उपाध्याय ने जुलाई 2018 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जब अहमदाबाद जिला कलेक्टर ने धर्म-परिवर्तन निरोधी कानूनी के अंतर्गत हिंदू धर्म से नास्तिक किए जाने की उनकी याचिका ठुकरा दी थी। उससे दो वर्ष पहले उपाध्याय ने कलेक्टर के समक्ष आवेदन दिया था जिस पर दो वर्षों तक विचार करने के बाद 16 मई, 2017 को कलेक्टर ने उनका आवेदन ठुकरा दिया। कलेक्टर का कहना था कि धर्म-परिवर्तन निरोधी कानून के तहत एक धर्म से दूसरे धर्म अपनाने का प्रावधान तो है, लेकिन धार्मिक से धर्मनिरपेक्ष या नास्तिक होने का कोई प्रावधान नहीं है। इसे लेकर अब उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश एएस दवे और न्यायमूर्ति बीरे वैष्णव वाली पीठ ने राज्य सरकार और अहमदाबाद के जिला कलेक्टर को उपाध्याय की याचिका को जवाबी नोटिस भेजा है। उपाध्याय ने अदालत को बताया था कि उनका जन्म एक हिंदू गरोडा ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जिससे वे अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते थे। उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने पूरी जिंदगी जातिगत पक्षपात का सामना किया है जिस कारण वह अब धर्म छोड़ना चाहते हैं। उपाध्याय ने उच्च न्यायालय से यह अपील भी की है कि प्रदेश सरकार को धर्म की आजादी कानूनी में संशोधन करने के लिए दिशा निर्देश दिए जाएं। आपको बता दें कि इस कानून के तहत किसी भी नागरिक को अपना धर्म परिवर्तित करने के लिए जिला कलेक्टर से अनुमति लेना जरूरी होता है। खबरें और भी:- Video : इंटरनेशनल रैपर पिटबुल के साथ गुरु रंधावा का 'स्लोली स्लोली' हुआ रिलीज़ जेट एयरवेज की बदहाली के लिए कर्मचारियों ने इन्हें ठहराया जवाबदार जेट एयरवेज के बंद होने से 22 हजार लोगों की नौकरियां हुई प्रभावित