गुलजार ने अपने गीतों को लेकर कही ये बात

कई हिंदी फिल्मों को हिट कराने में गीतकार गुलजार के गीतों में खास योगदान था। श्रोताओं को कई बार हैरानी होती है कि 90 वर्ष के होने के उपरांत भी वह जवां दिलों के अहसासों को इतनी शिद्दत से कैसे बयां कर सकते है। हाल ही में उन्होंने इस राज से पर्दा उठाया है कि कैसे वह ऐसे गाने बना पाते हैं, जिसके हर कोई पसंद करता है।

खुद को बताया दिल से बच्चा: दिल्ली में दिए गए हालिया एक सक्षत्रकार में गुलजार कहते हैं, 'मुझे लगता है कि मैं बड़ा नहीं हुआ हूं, मैं अभी भी बच्चा हूं। मेरे अंदर बचपन अब भी जिन्दा है। मैं अभी भी खेलता हूं, लिखता हूं और युवा लोगों और बच्चों के विचारों को जानता समझता हूं। पहले भी मैं ऐसा ही करता था।' अलग-अलग उम्र के लोगों से जुड़ने की अपनी आदत के बारे में पूछे जाने पर गुलजार ने रवींद्रनाथ टैगोर के बारें में जिक्र किया था। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा है कि 'एक बार टैगोर से किसी ने पूछा कि आपके बाल अब सफेद हो चुके है, क्या आप प्रलोक के बारे में चिंता भी कर रहे है। इस पर उनका जवाब था कि तुम सिर्फ मेरे बाल क्यों देखते हो, मैं हर उम्र का कवि हूं।' इस बात से गुलजार बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुए हैं। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा है कि, 'चाहे आप बच्चों के साथ हों या अलग-अलग उम्र के लोगों के साथ आप उन सभी के साथ अलग-अलग तरीके से बात करते हैं। चाहे वह आपके दादा हों, मां हों, भाई हों या बहन हों। हमें यह याद रखना चाहिए कि आप एक ही जीवन में अलग-अलग जीवन जीते हैं। इसलिए मैं अलग-अलग उम्र के लोगों के लिए गीत लिखता हूं।'

गीत को फिल्म का हिस्सा होना चाहिए : इसी  साक्षत्कार में गुलजार आगे बताते हैं कि एक गीत को मूवी का हिस्सा जैसा महसूस होना चाहिए वरना उसका कोई महत्व  नहीं है। वह फिल्म में बेमेल जैसा ही लगने वाला है। गुलजार का यह भी कहना है कि जब वह कोई गीत भी लिख सकते है, तो उनके सामने कहानी और परिस्थिति होती है। अगर गीत परिस्थिति को सही नहीं ठहराता है तो गीत फिल्म में गलत लगेगा। 

कैसे बनाया गीत मेरा कुछ सामान: गुलजार ने आगे कहा है कि कैसे उन्होंने 1987 में रेखा, नसीरुद्दीन शाह और अनुराधा पटेल अभिनीत मूवी 'इजाजत' के लिए 'मेरा कुछ सामान' गीत बनाया। गुलजार ये भी बोलते है 'यह एक लंबा गीत है और जब मैंने आरडी बर्मन को इसके बारे में कहा है कि तो उन्होंने कहा कि यह एक अच्छा दृश्य है। मैंने उनसे बोला है कि कि यह एक गीत है और उन्होंने मेरी तरफ देखा और फिर इसे एक तरफ फेंक दिया। उन्होंने कहा कि यह एक दृश्य है, गीत नहीं। उन्होंने कहा कि एक दिन तुम एक अखबार लाओगे और मुझसे इसके लिए एक धुन लिखने के लिए बोलोगे। आशा जी वहीं बैठी थीं। मैंने पंचम से बोला है कि यह कोई सीन नहीं है। फिर उन्होंने आशा जी को कुछ गुनगुनाते हुए भी सूना है, उन्होंने उनसे इसके बारे में सवाल किया। फिर उन्होंने उस गीत का थोड़ा सा हिस्सा गाया, एक वाक्य, फिर दूसरा और इस तरह से उन्होंने पूरा ट्रैक तैयार कर चुके है।' 

एक गीत को तब सफल मानते हैं: खबरों का कहना है कि गुलजार ने यह भी बोला है कि उनके द्वारा लिखे गए गीतों की सफलता संगीतकारों की वजह से है। वह कहते हैं, 'अगर गीत लोगों तक पहुंचता है और वह महसूस कर रहे है कि मैं क्या कहना चाह रहा हूं, चाहे वह दर्द हो या कुछ और तो यह मेरी सफलता है। 'तेरे बिना जिंदगी से (फिल्म 'आंधी') गाने की तरह अगर आप महसूस करते हैं कि मैं क्या कहना चाह रहा हूं, तो यह भी मेरी कामयाबी है। 

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