इमोशनल कर देगी लखनऊ की बेटी की कहानी, संघर्ष से मिलेगी प्रेरणा

बॉलीवुड में धीरे-धीरे कई फिल्में आ रही है. वही इस बीच मूवी ‘गुंजन सक्सेना- द कारगिल गर्ल’ के बारे में बात आरम्भ करने से पूर्व बात उस सर्कुलर की है, जो रक्षा मंत्रालय ने कुछ ही दिन पूर्व सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफिकेशन को इस अर्थ से भेजा कि सेनाओं पर बनने वाली सभी मूवीज को पब्लिक प्रदर्शन से पूर्व रक्षा मंत्रालय का अनापत्ति सर्टिफिकेट लेना आवश्यक है. 

वही मूवी ‘गुंजन सक्सेना- द कारगिल गर्ल’ में ऐसा कुछ तो नहीं है जिस पर सेना को कोई दिक्कत हो, किन्तु फिल्म के डायरेक्टर शरण शर्मा का ये कहना कि देश में उन्हें हेलीकॉप्टर मिलने में परेशानी हो रही थी, इस ओर भी रक्षा मंत्रालय को फोकस करना चाहिए. सेना की अदम्य स्टोरीज और भी बनना आवश्यक हैं, ये स्टोरीज लोगों में देशभक्ति की भावनाएं तो जाग्रत करती ही हैं, वही ‘गुंजन सक्सेना- द कारगिल गर्ल’ जैसी मूवी ये भी बताती है कि इन स्टोरीज में लोगों के व्यक्तिगत संघर्ष का कितना बड़ा योगदान है. तथा ऐसी हर स्टोरी को रक्षा मंत्रालय से पूरी सहायता प्राप्त होनी चाहिए.

‘गुंजन सक्सेना- द कारगिल गर्ल’ एक प्रकार से यदि देखा जाए, तो केवल कारगिल युद्ध की स्टोरी नहीं है. ये स्टोरी है तीस वर्ष पूर्व की लखनऊ में रहने वाली एक लड़की की, जिसका ड्रीम पायलट बनना है. मां को लगता है कि कुछ टोना करने से लड़की के सिर से पायलट बनने का भूत उतर जाएगा. भाई को भी बहन का ये बिहेवियर कुछ ठीक नहीं लगता. वह कमर्शियल पायलट बनने का प्रयास आरम्भ करती है और एक दिन एयरफोर्स पायलट बन जाती है. इस सम्पूर्ण संघर्ष में जो एक व्यक्ति उसके साथ निरंतर बना रहता है वो है उसके पिता, जिसका भारतीय थलसेना में लेफ्टिनेंट कर्नल पद से सेवानिवृत होना शायद उसकी परिवर्तित हुई सोचा का बड़ा कारण होता है. इसी के साथ फिल्म बेहद ही शानदार है.

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