आज भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि है जिसे हलछठ या हरछठ के नाम से जानते हैं. इस बार हलछठ पूजन व व्रत 28 अगस्त दिन शनिवार को मनाया जा रहा है। आप सभी को बता दें कि इसे पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, हलछठ, हरछठ व बलराम जयंती के नाम से भी पुकारते हैं। जी दरअसल भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हलषष्ठी का व्रत करते है। आपको बता दें कि बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मुसल है इस वजह से उन्हें हलधर भी कहते हैं और उन्ही के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है। कैसे करें पूजन- प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर दीवार पर गोबर से हरछठ चित्र मनाया जाता है। ध्यान रहे इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुना आदि के चित्र बनाए। अब इसके बाद हरछठ के पास कमल के फूल, छूल के पत्ते व हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें। अब पूजा में पसाई के चावल, महुआ व दही आदि का प्रसाद चढ़ा दें। ध्यान रहे इस पूजा में सतनजा यानी कि सात प्रकार का भुना हुआ अनाज चढ़ाया जाता है और इसमें भूने हुए गेहूं, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि शामिल होते हैं। वहीँ इसके बाद हलषष्ठी माता की कथा सुनने का भी विधान है। हलछठ कथा- एक ग्वालिन दूध दही बेचकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक बार वह गर्भवती और दूध बेचने जा रही थी तभी रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गई और वहीं पर एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को दूध खराब होने की चिंता थी इसलिए वह अपने पुत्र को पेड़ के नीचे सुलाकर पास के गांव में दूध बेचने के लिए चली गई। उस दिन हर छठ व्रत था और सभी को भैंस का दूध चाहिए था लेकिन ग्वालिन ने गाय के दूध को भैंस का बताकर सबको दूध बेच दिया। इससे छठ माता को क्रोध आया और उन्होंने उसके बेटे के प्राण हर लिए। ग्वालिन जब लाैटकर आई तो रोने लगी और अपनी गलती का अहसास किया। इसके बाद सभी के सामने अपना गुनाह स्वीकार पैर पकड़कर माफी मांगी। इसके बाद हर छठ माता प्रसन्न हो गई और उसके पुत्र को जीवित कर दिया। इस वजह से ही इस दिन पुत्र की लंबी उम्र हेतु हर छठ का व्रत व पूजन होता है। 'शिवसेना को डुबा रहे संजय राउत', बोले नारायण राणे काबुल अटैक: पूरा हुआ अमेरिका का बदला, आतंकियों को दी 13 सैनिकों के क़त्ल की सजा अमिताभ बच्चन पर हावी हो रहा बुढ़ापा और उम्र, कहा- 'मैं बार-बार सेट पर...'