नारी शक्ति की पर्याय 'मैरी कॉम' को जन्मदिन की बधाई

नई दिल्ली: मैरी कॉम किसी परिचय की मोहताज़ नहीं है, महिला मुक्केबाजी की दुनिया में मैरी कॉम भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में धूम मचा चुकी हैं. उन्होंने अपनी लगन और कठिन परिश्रम से यह साबित कर दिया कि, प्रतिभा का अमीरी और गरीबी से कोई संबंध नहीं होता और अगर आप के अन्दर कुछ करने का जज्बा है तो, सफलता हर हाल में आपके कदम चूमती है. पांच बार ‍विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी मैरी कॉम अकेली ऐसी महिला मुक्केबाज़ हैं जिन्होंने अपनी सभी 6 विश्व प्रतियोगिताओं में पदक जीता है. 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज़ बनीं.

मैरी कॉम का जन्म 1-3-1983 को एक किसान परिवार में हुआ था, टुकड़ों में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपना स्नातक चुराचांदपुर कॉलेज से पूरा किया. खेल कूद में उनकी दिलचस्पी तो शुरू से ही थी, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने बॉक्सिंग कोच नरजीत सिंह से ट्रेनिंग ली और इम्फाल से अपना करियर शुरू किया. एक बार बॉक्सिंग रिंग में उतरने के बाद मैरी कॉम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, हालाँकि एक महिला के तौर पर उनको शुरुआती दौर में कुछ समस्या जरूर आई, लेकिन उनका फौलादी इरादा, मुश्किलों पर भारी पड़ा. इसी को दर्शाती एक फिल्म भी मैरी कॉम पर बनी है.

मैरी कॉम का विवाह के.ओन्लेर कॉम से 2005 में हुआ, उनकी ओन्लेर से मुलाकात सन 2001 में दिल्ली में हुई जब वो राष्ट्रिय खेलों में भाग लेने पंजाब जा रही थीं, उनके तीन बच्चे हैं. एशियाई महिला मुक्केबाज़ी में तो उन्होंने कई स्वर्ण पदक जीते हैं और 2012 के लन्दन ओलंपिक्स में कांस्य पदक जीत कर उन्होंने देश का नाम ऊँचा किया है. वर्ष 2006 में उन्हें पद्मश्री से और 2009 में उन्हें देश के सर्वोच्च खेल सम्मान ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. 

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