लोग हर मोड़ पे -राहत इन्दौरी

लोग हर मोड़ पे...

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं

नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं

मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं

-राहत इन्दौरी

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