इलाहाबाद। वाराणसी में तीन तलाक को लेकर न्यायालय में सुनवाई हुई इस मामले में न्यायालय ने कहा कि पर्सनल लाॅ कोई भी हो लेकिन वह संविधान से ऊपर नहीं है। न्यायालय ने पर्सनल लाॅ के फतवे को अमान्य कहा जाता है जो न्याय व्यवस्था से अलग हो। उसके खिलाफ हो। दरअसल वाराणसी की एक महिला ने अपने पति अकील जमील के विरूद्ध दहेज हैरेसमेंट प्रकरण को रद्द करने से नकार दिया। अकील का कहना था कि उसने पत्नी सुमालिया को तलाक दे दिया है और दारुल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया है। इस आधार पर उस पर दहेज हैरेसमेंट का दर्ज केस रद्द होना चाहिए। कहना था कि पर्सनल लाॅ के नाम पर महिलाओं के आधारभूत मानव अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता है। हां यदि तीन तलाक होता है तो फिर दहेज हैरासमेंट केस की व्यवस्था दी जाती है। उच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि हैरेसमेंट के प्रकरण की सुनवाई करते हुए इस तरह की व्यवस्था दी गई है। जिसमें महिलाओं का सम्मान नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता उसे सिविलाइज़्ड नहीं कहा जा सकता है। न्यायालय का कहना था कि तलाक इस तरह से नहीं दिया जा सकता है जिससे मूल अधिकार प्रभावित होते हों। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी की स‍िंगल बेंच ने की। इस मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ पर्सनल बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलाना वलीम रहमानी ने अप्रैल में कहा था। बोर्ड का मानना है कि तीन तलाक औरत को मुश्किलों से बचाने के लिए है। हम दूसरे मजहब में दखल नहीं करते हैंए तो दूसरा मजहब भी हमारे मामले में दखल ना दे। तलाक का मामला शरीयत के हिसाब से ही रहेगा। हाई कोर्ट के जज ने सुनाई SC के 8 जजों को सजा ‘वीरे दी वेडिंग’ हुई जिमी शेरगिल की..... महिलाओ को हक़ दिलाने वाली लीला सेठ ने ली अंतिम साँस