वाशिंगटन: दुनियाभर के नेता और वार्ताकार ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को बरकरार रखने के लिए ग्लासगो जलवायु समझौते की एक अच्छे करार के तौर पर प्रशंसा करने में लगे हुए है, लेकिन कई वैज्ञानिकों को इस बात पर शक है कि यह लक्ष्य कायम रह पाएगा भी या नहीं. संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने पूर्व-औद्योगिक काल से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य के बारें में बात करते हुए ‘ मीडिया से कहा है कि ‘अगर बड़ी तस्वीर को देखा जाए, तो मुझे लगता है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को संभव बनाने के लिए हमारे पास एक अच्छी योजना है.’ विश्व के लगभग 200 देशों के मध्य शनिवार देर रात्रि यह समझौता हुआ, इसके अंतर्गत जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय, इसके इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने के भारत के सुझाव को मान्यता दी जा चुकी है. ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन ने यहां हुए COP26 जलवायु सम्मेलन के अंत में हुए इस करार की सराहना करते हुए इसे ”आगे की दिशा में बड़ा कदम” तथा कोयले के उपयोग को ”कम करने” के लिये पहला इंटरनेशनल समझौता कहा है. ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस करने का रोडमैप: अपनी बात को जारी रखते हुए बोरिस जॉनसन ने कहा, ‘अगले कुछ सालो में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. लेकिन आज का समझौता एक बड़ा कदम है. यह कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए पहला इंटरनेशनल समझौता है. साथ ही यह ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए एक रोडमैप है.’ लेकिन कई वैज्ञानिको को इस लक्ष्य के बने रहने पर भी शक है. उनका बोलना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य तो भूल जाना ही बेहतर है. पृथ्वी तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रही है. चीन में जारी है डेल्टा वेरिएंट की मार, 24 घंटों में सामने आए इतने केस स्वर्गीय दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति डी क्लार्क का राजकीय अंतिम संस्कार का विरोध सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने शुरू किया पहला गैर-लाभकारी शहर