आमतौर पर बच्चा 40 सप्ताह तक गर्भ में रहता है. उस का समय पूर्व जन्म होने से उस को गर्भ में विकसित होने के लिए कम समय मिल पाता है. इसलिए उस को अकसर जटिल चिकित्सकीय समस्याएं होती हैं. बच्चे के समय पूर्व जन्म लेने का कारण स्पष्ट नहीं हो पाता, आहार की समस्या: प्रीमैच्योर बच्चे के रिफ्लैक्स चूसने और निगलने के लिए कमजोर होते हैं जिस से उसे अपना आहार प्राप्त करने में मुश्किल होती है. शारीरिक तापमान कम होना: छोटे आकार, पारदर्शी व नाजुक त्वचा के चलते ऐसे बच्चे का शारीरिक तापमान कम होता है और त्वचा के जरीए शरीर का बहुत सा तरल पदार्थ खो जाता है जिस से बच्चे में पानी की कमी हो जाती है. कम तापमान की वजह से उसे सांस लेने में दिक्कत होती है और ब्लड शुगर का स्तर कम रहता है. ऐसे बच्चे को अतिरिक्त गरमाहट चाहिए होती है, जो इन्क्युबेटर से दी जाती है. श्वास समस्या: अपरिपक्व फेफड़ों व मस्तिष्क की वजह से उसे सांस लेने में कठिनाई होती है. सांस लेने की प्रक्रिया में लंबे विराम को ऐपनिया कहते हैं, जो अपरिपक्व दिमाग के कारण होता है. ऐसफिक्सिया: जन्म के तुरंत बाद शिशु श्वास लेना शुरू नहीं कर पाता, इसलिए उसे कृत्रिम श्वास की आवश्यकता होती है. संक्रमण: समय पूर्व जन्मे बच्चे में गंभीर जटिलताएं जल्दी विकसित हो जाती हैं जैसे रक्तधारा में संक्रमण (सेप्सिस). इस प्रकार के संक्रमण बच्चे की अविकसित रोगप्रतिरोधक प्रणाली की वजह से होते हैं. हृदय में समस्याएं: दिल में छिद्र (पीडीए- पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस) होने से सांस लेने में दिक्कत होती है. इस से हाइपोटैंशन (निम्न रक्तचाप) हो सकता है और किसीकिसी मामले में हार्ट फेल भी हो जाता है. रक्त समस्याएं: ऐसे बच्चे को रक्त संबंधी समस्याओं का भी जोखिम रहता है. जैसे ऐनीमिया (हीमोग्लोबिन कम होना) और शिशु पीलिया. इन की वजह से बच्चे को कई बार खून चढ़ाने तथा फोटोथेरैपी लाइट की आवश्यकता पड़ती है. गैस्ट्रोइंटैस्टाइनिल समस्याएं: समय से पूर्व जन्मे बच्चे की जठरांत्रिय प्रणाली अपरिपक्व हो सकती है. बच्चा जितनी जल्दी पैदा होता है उस में नैक्रोटाइजिंग ऐंटेरोकोलाइटिस (एनईसी) विकसित होने का जोखिम उतना ही ज्यादा होता है. यह गंभीर अवस्था प्रीमैच्योर बच्चे में तब शुरू होती है जब वे फीडिंग शुरू कर देते हैं. जो समय पूर्व जन्मे बच्चे केवल स्तनपान करते हैं उन में एनईसी विकसित होने का जोखिम बहुत कम रहता है. मस्तिष्क में समस्याएं: ऐसे बच्चे को दिमाग में रक्तस्राव का भी जोखिम रहता है, जिसे इंट्रावैंट्रिक्युलर हैमरेज कहते हैं. अधिकांश हैमरेज हलके होते हैं और अल्पकालिक असर के बाद ठीक हो जाते हैं. शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा सही रखने के लिए इन पदार्थो का करे सेवन, जाने गैजेट्स के इस्तेमाल से बढ़ रही है ये बीमारिया, कैसे करे इसका उपाय... रात में बार बार नींद खुलती है तो हो सकता आप है स्लीप एपनिया के शिकार, जाने .