निर्भया के दरिंदों की अब नहीं खैर, नहीं बचा कोई विकल्प

नई दिल्ली: पिछले 8 वर्षों से लगातार चलते आ रहे निर्भया के मामले में हर दिन कोई न कोई नया रुक देखने को मिल रहा है. वहीं निर्भया के दरिंदों में से एक पवन कुमार गुप्ता की दया याचिका राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बीते बुधवार यानी 4 मार्च 2020 को खारिज की जा चुकी है. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी.  जंहा इसी के साथ चारों दरिंदों पवन गुप्ता, अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा और मुकेश सिंह के सभी विकल्प खत्म हो चुके हैं. जंहा पवन की दया याचिका लंबित होने के चलते ही 3 मार्च को होने वाली दरिंदों की फांसी टल चुकी है. वहीं, पवन की अर्जी खारिज होने के साथ ही तिहाड़ जेल प्रशासन ने फांसी की नई तारीख के लिए पटियाला हाउस कोर्ट में अर्जी लगा दी. इस पर आज सुनवाई होगी. 

जंहा इस बात का पता चला है कि बीच, निर्भया के परिजन की ओर से वकील सीमा कुशवाहा ने बताया कि चारों दोषियों की फांसी की नई तारीख की मांग के लिए वह एक अपील देने जा रही हैं. जंहा इस बात पर उन्होंने कहा, सभी दोषियों ने अपने सभी कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल कर लिया है. अब जो तारीख तय होगी, वह अंतिम तारीख होगी. हालांकि, अक्षय ने भी नई दया याचिका राष्ट्रपति को राष्ट्रपति को भेजी है, जिसके पीछे दलील दी गई है कि पहली दया याचिका में पर्याप्त तथ्य नहीं थे. जंहा पवन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुधारात्मक याचिका पहले ही खारिज की जा चुकी. इसके बाद पवन के पास सिर्फ दया याचिका का विकल्प ही बचा था. नियमों के अनुसार दया याचिका खारिज होने के बाद भी दोषी को फांसी पर लटकाने से पहले 14 दिन का वक्त मिलता है. इससे पहले दोषियों की फांसी तीन बार 22 जनवरी, एक फरवरी और तीन मार्च को टल चुकी है.

दोषियों को आज देना होगा जवाब, जज बोले दूसरे पक्ष को अनसुना नहीं कर सकते: वहीं यह भी कहा जा रहा है कि इस बीच दिल्ली सरकार ने बुधवार को तीस हजारी कोर्ट का रुख किया. जज धर्मेंद्र राणा की अदालत को दिल्ली सरकार ने बताया कि राष्ट्रपति की ओर से पवन की दया याचिका खारिज होने के बाद दोषियों के सभी विकल्प खत्म हो चुके हैं. इस पर जज राणा ने दोषियों को गुरूवार यानी आज 5 मार्च 2020 को अपना जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है. जज राणा ने कहा, प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार और निजी स्वतंत्रता) के तहत है. ऐसे में दूसरे पक्ष को अनसुना नहीं किया जा सकता.

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