नई दिल्ली. भारतीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब कोई हाईकोर्ट के जज बतौर आरोपी सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए है. हर कोई इस स्थिति का गवाह बनना चाहता था. चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली बेंच में जब कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस कर्नन से पूछा गया कि क्या वो जजों पर लगाये गए आरोपों पर कायम हैं या जजों के खिलाफ लगाये आरोप वापस लेंगें और बिना शर्त माफ़ी मांगने को तैयार हैं. जस्टिस कर्नन ने इस बात पर बेंच से कहा कि मुझसे से ज्यूडिशियल काम वापस लेने से मैं मानसिक रूप से परेशान हु, मुझे गिरफ्तार करो या दण्डित करो, किन्तु मुझे मेरा काम लौटा दो. आगे वह कहते है कि मैंने न्यायपालिका के खिलाफ कुछ नहीं किया है. मैं भ्रष्ट जजों के खिलाफ लड़ रहा हूं, जिनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है. यदि चाहे तो में मेरे खिलाफ जाँच करवाइये और मै गलत हु तो मुझे सजा दीजिए. कोर्ट ने एक बार फिर पूछा किवो जजों पर लगाये गए आरोपों पर कायम हैं या जजों के खिलाफ लगाये आरोप वापस लेंगे और बिना शर्त माफ़ी मांगेगें. किन्तु इस बार भी कर्नन ने जवाब नहीं दिया. कोर्ट ने जस्टिस कर्नन को एक और मौका देते हुए जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. इसके बाद जब जस्टिस कर्नन कोर्ट से बाहर आये तो मीडिया के सामने संविधान पीठ के सातों जजों के खिलाफ एक आदेश पारित किया कि 3 अप्रैल से इन जजों को कोई न्यायिक और प्रशासनिक काम नहीं मिलेगा. ये भी पढ़े NIIT पर सुप्रीम कोर्ट ने दी स्टूडेंट्स को राहत जस्टिस कर्णन ने कहा न्यायिक कार्य करने दिया जाए या सजा दी जाए तिहाड़ जेल में बोर हो रहे बाहुबली शहाबुद्दीन ने मांगा टीवी