14 जून: हिन्दू को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा या नही ?

जिस देश में हर समाज के लोगों को संख्या के हिसाब से अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा रहा है और उन्हें वो सारी सरकारी सुविधाएं दी जा रही है जो एक अल्पसंख्यक समाज से ताल्लुक रखने वाले हिंदुस्तानी को दी जानी चाहिए. तो ऐसे में सवाल यही उठता है कि देश के आठ राज्यों में तिल बराबर रह गया हिन्दू अब तक अल्पसंख्यक क्यों नही है? या उसे अपने आप को अल्पसंख्यक साबित क्यों करना पड़ रहा है, जबकि कानून तो सब के लिए सामान है फिर हिन्दुओं के लिए अल्पसंख्यक की परिभाषा भिन्न क्यों?

गौरतलब है कि पंजाब, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और लक्षद्वीप के हिंदुओं को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा दिये जाने की मांग वाली याचिका पर 14 जून को आयोग की तीन सदस्यीय उप समिति सुनवाई करेगी. मगर हिंदुस्तान में हिन्दू अपने हक़ के लिए तरस रहे है. हालत यह है कि देश के आठ राज्यों में अल्पसंख्यक होने के बावज़ूद हिन्दू अपने अधिकारों के लिए लगातार लड़ रहे है. मगर अभी तक उनको कोई कामयाबी नहीं मिली है. 2011 में हुई जनगणना के हिसाब से देश के आठ राज्यों में हिन्दू अल्पसख्यक है और इस बार 14 जून को इसे लेकर बड़ी बैठक होना है, जिसमे मुख़्तार अब्बास नकवी और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय जिन्होंने ये याचिका दायर की  25 पेज कि रिपोर्ट को एक्सामिन करने के बाद मामले पर अपना रुख साफ करेगा.

अश्विनी के अनुसार सभी तरह के क़ानूनी पहलु पर विचार किया जा रहा है. इस बीच इस मुद्दे पर जब भी बात की गई है सिर्फ आश्वासन और दिलासे के आलावा ज्यादा कुछ हासिल नही हुआ है बहरहाल 14 जून हिन्दुओं के हक़ की इस लड़ाई में एक महत्वपूर्ण तारीख है. 

हिन्दू अल्पसंख्यक: वकील अश्विनी उपाध्याय के प्रयासों का फैसला 14 जून को

तो क्या हिन्दू अल्पसंख्यक नहीं हो सकते?

 

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